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________________ हठयोग परिचय वस्तुतः प्राचीन हठयोग विज्ञान क्या है? वर्तमान में हठयोग ने अपना अर्थ खो दिया है। उसे शारीरिक योग ही मान कर उसका संबंध आसनप्राणायाम से जोड़ा जाता है। यह भ्रम है। प्राचीन हठयोग में कुछ विशेष प्रक्रियाओं का समन्वय होता था / इनका वर्णन इस पुस्तक में किया जायेगा। अभ्यास के प्रमुख 6 वर्ग हठयोग के अंतर्गत आते हैं / अतः हठयोग का अर्थ विशेष रूप से आसन - प्राणायाम से ही नहीं लगाना चाहिए। 'हठ' शब्द की उत्पत्ति दो बीज मंत्रों के योग से हुई है। ये हैं - हं एवं ठं। इनका विवेचन नाड़ियों से संबंधित 'यौगिक आत्मिक जीवतत्व' नामक खण्ड में किया जायेगा / सृष्टि में दो विपरीत धारायें या शक्तियाँ कार्य करती हैं / ये धनात्मक एवं ऋणात्मक धारायें हैं। इनकी उत्पत्ति मानव की इड़ा नाड़ी में मानसिक शक्ति के रूप में होती है / प्राण शक्ति का स्रोत पिंगला नाड़ी है जो शारीरिक क्रियाओं से संबंधित है। बीज मंत्र हं पिंगला नाड़ी में प्रवाहित सूर्य - प्रवाह का परिचायक है। बीज मंत्र ठं. इड़ा नाड़ी में बहने वाले चन्द्र - प्रवाह की ओर संकेत करता है। प्राण के इन दो प्रवाहों के मध्य संतुलन लाना ही हठयोग का उद्देश्य है / इस संतुलन के परिणामस्वरूप प्राण का प्रवाह आत्म-शरीर में स्थित महत्वपूर्ण सुषुम्ना नाड़ी में प्रारम्भ हो जाता है। इस प्रकार मानव - चेतना का विकास होता है / उसके चरण आध्यात्मिक आलोक या ज्ञान की ओर बढ़ते हैं / योग की समस्त शाखाओं का उद्देश्य यही है परन्तु हठयोग की विधियाँ अपूर्व हैं। 'घेरण्ड संहिता' नामक योग की प्राचीन पुस्तक के अनुसार सात ऐसे सोपान हैं जिनका अच्छी तरह अभ्यास आत्मज्ञान प्राप्ति के पूर्व आवश्यक है / ये निम्नानुसार हैं१. शोधन - हठयोग द्वारा शारीरिक शुद्धि / 2. दृढ़ता - आसन द्वारा शरीर एवं मन की दृढ़ता / 3. स्थिरता - मुद्रा-बंध के अभ्यास से शारीरिक एवं मानसिक शांति। . 4. धैर्य - प्रत्याहार की क्रिया द्वारा बाह्य जगत से संबंध - विच्छेद / 328
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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