________________ वज्रोली मुद्रा वज्रोली मुद्रा विधि सरल अभ्यास किसी भी ध्यान के आसन में बैठिये | हाथ घुटनों पर रहें। नेत्रों को बन्द कर शरीर को शिथिल कीजिये / निम्न उदर प्रदेश पर तनाव लाते हुए तथा मूत्र - प्रणाली का संकोचन करते हुए प्रजनन - अंगों को ऊपर की ओर खींचिये / यह आकुंचन क्रिया ठीक वैसी ही है जैसी कि. मूत्र - त्याग क्रिया को कुछ समय तक रोकने के लिए की जाती है। प्रजनन -अंगों का खिंचाव कुछ ऊपर की ओर होना चाहिए। उच्च अभ्यास योग्य गुरु के निर्देशन में ही उच्च अभ्यास करना चाहिए अन्यथा स्थायी चोट पहुँचने की संभावना रहती है। मूत्र - नलिका में लगभग 12 इंच लम्बी चाँदी की नली का प्रवेश कराया जाता है। इस नलिका से पानी ऊपर खींचा जाता है | इस क्रिया में पूर्णता प्राप्ति के उपरांत इसी नली से मधु और पारा ऊपर खींचा जाता है / लम्बी अवधि के अभ्यास के उपरान्त नलिका की मदद के बिना ही .. उपरोक्त क्रिया सम्पन्न की जा सकती है। प्रारम्भ में 1 इंच तक ही चाँदी या रबर की नली को भीतर डालिये। तत्पश्चात् धीरे-धीरे यह दूरी 12 इंच कीजिये। . एकाग्रता स्वाधिष्ठान चक्र पर। लाभ वज्र नामक नाड़ी से इसका संबंध है जो प्रजनन अंगों में प्राण - शक्ति का प्रवाह करती है। ब्रह्मचर्य - पालन के लिए उपयोगी विधि है / इस क्रिया के परिणामस्वरूप प्राण - शक्ति पर नियंत्रण प्राप्त होता है जो कि प्रायः वीर्यपात के कारण नष्ट हो जाया करती है / इस शक्ति का रूप - परिवर्तन उच्च यौगिक अभ्यास के लिए कर सकते हैं। 320