________________ सामने झुकी हुई अवस्था में श्वास रोकिये। दीर्घ पूरक कीजिये | क्रिया की पुनरावृत्ति कीजिये / बायें पैर की एड़ी को गुदाद्वार के नीचे रखते हुए तथा दाहिने पैर को .. सामने फैलाकर अभ्यास कीजिये | प्रकारान्तर यदि किसी को इस अवस्था में अभ्यास करने में कठिनाई हो तो उसे सिद्धासन या सिद्धयोनि आसन में महामुद्रा करनी चाहिए। ख्याल रखें कि एड़ी से गुदा - प्रदेश पर इसी भाँति दबाव पड़े। .... आवृत्ति प्रारम्भिक अभ्यासी प्रत्येक पैर से 3 बार अभ्यास कर सकता है। धीरे-धीरे इच्छानुसार क्रिया की संख्या में वृद्धि की जा सकती है। क्रम किसी भी समय अभ्यास किया जा सकता है। विशेषकर ध्यान के पूर्व अभ्यास करने का निर्देश दिया जाता है / सावधानी जितनी अधिक देर कुम्भक किया जाये, उतना ही लाभप्रद है परन्तु फेफड़ों पर किसी प्रकार का तनाव न पड़े। लाभ सम्पूर्ण शरीर एवं मन को स्थिर करता है इसलिए ध्यान की उत्तम तैयारी करता है। पूरे शरीर की प्राण - शक्ति को उत्प्रेरित करता है। .. उदर की अव्यवस्था दूर करता है। 318 .