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________________ सहस्रार पर ध्यान कीजिए। . सिर से शुद्ध ज्योति - चक्र को निकलते हुए देखने का प्रयास करें। अनुभव कीजिए कि आपका समस्त शरीर सम्पूर्ण मानव जाति में शान्ति की तरंगें बिखेर रहा है | अधिकतम अवधि तक इस स्थिति में रुकिये / फेफड़ों पर तनाव न पड़े। अब उपरोक्त पाँचों क्रियाओं की विपरीत रूप से पुनरावृत्ति करते हुए तथा रेचक क्रिया करते हुए प्रारम्भिक अवस्था में लौट आइये / रेचक की अन्तिम स्थिति में चेतना मूलाधार चक्र पर होनी चाहिए / रेचक के समय अनुभव करते जाइये कि प्राण शक्ति क्रमशः नीचे के चक्रों की ओर आ रही है। यह विपरीत रूप पूरक की भाँति होगा | धीमी किन्तु गहरी श्वास लेते हुए शरीर का शिथिलीकरण कीजिये / एकाग्रता अभ्यासी की चेतना का प्रवाह मूलाधार से सहस्रार एवं सहस्रार से मूलाधार की ओर अविरल एवं समकालीन होना चाहिए | इसका संबंध श्वसन एवं हाथ की क्रियाओं से हो / पूर्णता -प्राप्ति पर श्वास श्वेत प्रकाश की धारा की तरह ऊपर चढ़ती एवं नीचे उतरती हुई सुषुम्ना नाड़ी में दिखाई देगी। . * क्रम . ध्यानाभ्यास के पूर्व। सावधानी ... नियमित अभ्यास से पूरक, कुम्भक व रेचक की अवधि में वृद्धि करें / फेफड़ों पर अधिक तनाव न पड़े। . लाभ .. यह एक श्रेष्ठ मुद्रा है जिसमें प्राणायाम (सूक्ष्म शक्ति पर नियंत्रण) का योग, मुद्रा के सांकेतिक भावों से है। प्रत्येक व्यक्ति में निहित सुषुम्ना प्राण शक्ति को जागृत करने के लिए प्रथम श्रेणी का अभ्यास है। यह प्राण शक्ति का वितरण सम्पूर्ण शरीर में करता है / इस प्रकार हमारे शारीरिक बल, व्यक्तिगत आकर्षण शक्ति तथा स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। 315
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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