________________ पंचम अवस्था उदर द्वारा की गई पूरक - क्रिया एवं हाथों की गति को परस्पर संबंधित कीजिये। तृतीय अवस्था . छाती का विस्तार करते हुए पूरक क्रिया करते जाइए। साथ ही हाथों को ऊपर उठाइये / इस अवस्था में हाथों की स्थिति छाती के सम्मुख हो / छाती के विस्तार द्वारा पूरक करते हुए इस अभ्यास में अनुभव कीजिये कि मणिपुर से प्राण - शक्ति अनाहत की ओर खींची गयी है। चतुर्थ अवस्था कंधों को ऊपर उठाते हुए फेफड़ों में और अधिक वायु भरने की कोशिश कीजिये / इस अभ्यास में अनुभव कीजिये कि प्राणशक्ति अनाहत चक्र से विशुद्धि चक्र में आ गयी / तत्पश्चात् वह आज्ञा चक्र में तरंगों के समान प्रसारित होती हुई सहस्रार में पहुँच गयी। हाथों को ग्रीवा के समीप लाते हुए गति का संबंध श्वास से कीजिये। पंचम अवस्था दोनों हाथों को धड़ के दोनों बाजुओं में फैलाते हुए अंतरंग कुंभक कीजिये / अंतिम अवस्था में फैले हुए हाथ कानों के समतल रहेंगे। हाथ बाहर की ओर फैले रहेंगे, परन्तु पूरी तरह तने हए नहीं रहेंगे। . 314 .