________________ प्राण मुद्रा द्वितीय अवस्था प्राण मुद्रा . चतुर्थ अवस्था विधि ध्यान के किसी भी आसन में बैठ जाइये / मेरुदण्ड लंबवत् हो व मुँह सामने की ओर हो / हाथों को गोद में रखिये .. तथा नेत्रों को बंद कीजिये। प्रथम अवस्था क्षमतानुसार लम्बा रेचक कीजिये / इस क्रिया में उदर के स्नायुओं का संकोचन करते हुए. फेफड़ों से अधिकतम वायु का निष्कासन कीजिये / श्वास रोकिये, साथ ही मूलबंध लगाइये। .. मूलाधार चक्र पर ध्यान कीजिये / - आरामदायक स्थिति तक श्वास रोकिये। द्वितीय अवस्था / मूलबंध शिथिल कीजिये / उदर का विस्तार करते हुए धीरे-धीरे लंबा पूरक कीजिये | अधिकतम मात्रा में वायु का प्रवेश फेफड़ों में होना चाहिए / साथ ही हाथों को उठाकर नाभि प्रदेश के सम्मुख ले आइये / हथेलियाँ धड़ की ओर खुली रहें / दोनों हाथों की अंगुलियों का रुख एक-दूसरे की ओर हो; परन्तु वे आपस में स्पर्श न करें / इस द्वितीय अभ्यास में उदर से पूरक करते समय प्राण-शक्ति का अनुभव मूलाधार चक्र से ऊपर मणिपुर चक्र में जाते हुए कीजिये। 313