________________ भुजंगिनी मुद्रा भुजंगिनी मुद्रा विधि किसी भी ध्यान के आसन में बैठिये / सम्पूर्ण शरीर को शिथिल कीजिये। इस मुद्रा में अभ्यासी मुँह के द्वारा श्वास लेने का प्रयास करता है / पानी पीने की भाँति वायु के कई कई घूट लेते हुए उसे फेफड़ों में नहीं, वरन् पेट में पहुँचाने की कोशिश कीजिये / अधिकतम अवस्था तक पेट का विस्तार कीजिये। कुछ देर श्वास को भीतर रोकिये। तत्पश्चात् डकार लेते हुए श्वास को बाहर निकालिये / ' क्रिया की पुनरावृत्ति कीजिये। आवृत्ति .. इच्छानुसार आवृत्तियाँ कीजिये। विशेष बीमारियों में अधिक बार क्रिया की पुनरावृत्ति कीजिये | .... किसी भी समय अभ्यास किया जा सकता है परन्तु हठयोग की शंख प्रक्षालन क्रिया (हठयोग के अभ्यास में देखिये) के उपरांत करने से अधिक लाभ मिलता है। टिप्पणी यह अभ्यास पाचक रस उत्पन्न करने वाली ग्रंथियों एवं अन्ननलिका की दीवारों को नवजीवन प्रदान करता है / उदर को स्वस्थ बनाता है। इस प्रदेश में एकत्रित पुरानी वायु का निकास करता है। 307