________________ विशुद्धि के पश्चात् पुनः चेतना मूलाधार पर ले आइये और क्रिया की पुनरावृत्ति कीजिये। कुम्भक की सुखद स्थिति तक उपरोक्त क्रिया कीजिये / अब मूलबन्ध शिथिल कीजिये। उड्डियान बन्ध को मुक्त कीजिये। अन्त में जालन्धर बन्ध हटाइये तथा धीरे-धीरे पूरक कीजिये / एक बार सामान्य श्वास-प्रश्वास क्रिया के उपरान्त 'महाबन्ध' का अभ्यास पुनः कीजिये। टिप्पणी चेतना को एक चक्र से दूसरे चक्र पर स्थानांतरित कर चक्र के ठीक स्थान पर लाने में प्रारम्भिक अभ्यासियों को कठिनाई होगी / ऐसे अभ्यासियों को परिशिष्ट में दी गयी जानकारी द्वारा उनकी स्थिति ज्ञात कर स्थूल अनुमान से उस प्रदेश पर ध्यान करना चाहिए। क्षमतानुकूल अधिक देर तक श्वास रोकने पर यह अभ्यास बहुत ही प्रभावशाली हो जाता है। अभ्यासी को धीरे-धीरे कुम्भक की अवधि में वृद्धि करनी चाहिए / किसी भी स्थिति में तनाव नहीं पड़ने पाये। आवृत्ति " नौ आवृत्तियों तक। सावधानी तीनों बन्धों के स्वतंत्र वर्णन में बतलाये अनुसार | तीनों बन्धों में अधिकार - प्राप्ति के उपरान्त ही 'महाबन्ध' का अभ्यास कीजिये। लाभ .... तीनों बन्धों के लिए वर्णित लाभ की प्राप्ति होती है। आत्मिक शक्ति के प्रवाह को उत्प्रेरित करने तथा ध्यान के पूर्व मन को अन्तर्मुखी बनाने के लिए एक शक्तिशाली अभ्यास है। अतः आध्यात्मिक साधकों के लिए विशेष रूप से लाभप्रद है। 297