________________ मुद्रा प्रस्तावना हजारों वर्ष पूर्व भारत में अधिकांश व्यक्तियों, विशेषकर ज्ञान या सत्य की खोज करने वाले सच्चे जिज्ञासुओं को आसन, प्राणायाम आदि योगाभ्यासों की विद्या सरलता से प्राप्त हो जाती थी। तथापि उच्च शक्तिशाली अभ्यासों का ज्ञान कुछ चुने हुए लोगों की ही धरोहर रहा करती थी। यह ज्ञान गुरु शिष्य को प्रदान किया करते थे या प्राचीन ऋषियों द्वारा रचित संस्कृत ग्रंथों के माध्यम से इस ज्ञान की प्राप्ति की जाती थी / परन्तु वर्तमान काल में समस्त विश्व के बहुसंख्यक व्यक्ति अपने आध्यात्मिक ज्ञान के विकास के लिए उत्सुक तथा तैयार हैं / विशेष रूप से इस नवीन काल में गुप्त विद्याओं का ही विस्तार या प्रचार अधिक है। योग के महत्वपूर्ण अभ्यासों में मुद्राओं का अभ्यास महत्वपूर्ण है। कुंडलिनी शक्ति के जागरण में मुद्राओं का अभ्यास सहायक है / अतः यह अभ्यास आसनों एवं प्राणायामों के अभ्यास से अधिक शक्तिशाली माना जाता है / मुद्रा एवं अन्य यौगिक अभ्यासों का वर्णन करने वाला सबसे प्राचीन ग्रंथ 'घेरण्ड संहिता' है / 'हठ योग' के इस ग्रंथ की रचना मुनि घेरण्ड ने की थी / इस ग्रंथ में योग के देवता शिवजी अपनी पली एवं शिष्या पार्वती जी से कहते हैं - "हे देवी, मैंने तुम्हें मुद्राओं का ज्ञान प्रदान किया है। केवल इनका ज्ञान ही सब सिद्धियों का दाता है।" घेरण्ड संहिता में कुल पच्चीस मुद्राओं का वर्णन किया गया है / इनमें 298