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________________ बन्द हो जाती है तथा अनेक अंगों पर दबाव पड़ता है। आवृत्ति . वास रोकने की आरामदायक अवधि तक दस बार कीजिये / एकाग्रता विशुद्धि चक्र पर। क्रम आदर्श रूप से मुद्रा एवं प्राणायाम के साथ / यदि मात्र इसी का अभ्यास करना हो तो आसन -प्राणायाम के पश्चात् एवं ध्यान के पूर्व कीजिये / सावधानी बन्ध को शिथिल कर सिर को उठाकर ही पूरक या रेचक कीजिये / सीमाएँ . उच्च रक्तचाप, अन्तःमस्तिष्क-दाब या दिल की बीमारी में योग्य व्यक्ति की सलाह से ही अभ्यास किया जाये / लाभ . .. ग्रीवा प्रदेश में स्थित रंध्र की नाड़ियों (sinus receptors) पर इस शारीरिक प्रक्रिया से दबाव पड़ता है जिसके परिणामस्वरूप ही उपरोक्त लाभ की प्राप्ति होती है / मस्तिष्क को रक्त प्रदान करने वाली ग्रीवा शिरा (jugular vein) के रक्तचाप से ये नाड़ियाँ शीघ्र ही प्रभावित होती हैं / यदि रक्तचाप उच्च हो तो मस्तिष्क पर प्रभाव पड़ता है तथा दिल की धड़कन कम हो जाती है। यदि रक्त का दाब निम्न हो जाये तो दिल की धड़कन बढ़ जाती है / ये नाड़ियाँ रक्तचाप के प्रति अति ग्रहणशील होती है | अतः जालन्धर बन्ध के अभ्यास काल में इन पर दबाव पड़ने से दिल ... की धड़कन न्यून हो जाती है तथा मन को स्थिरता प्राप्त होती है। ___ चुल्लिका तथा उपचुल्लिका ग्रन्थियों की मालिश होती है। उनकी क्रियाशीलता बढ़ती है। इन ग्रन्थियों का, विशेषकर चुल्लिका ग्रन्थि का शारीरिक रचना, विकास व प्रजनन-क्रियाओं पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। इनकी सक्षमता से समस्त शरीर प्रभावित होता है। यह मानसिक तनाव, चिंता, क्रोध के निवारणार्थ एक अच्छा अभ्यास है। साधक को आश्चर्यजनक रूप से ध्यान के लिए तैयार करता है। 289
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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