________________ भस्त्रिका प्राणायाम विधि ध्यान के किसी सुखप्रद आसन में बैठिये / सिर एवं मेरुदंड सीधे रहें / नेत्र बंद रहें। शरीर शिथिल कीजिये। प्रथम अवस्था बायें हाथ को बायें घुटने पर रखिये / दाहिने हाथ को मस्तक पर भ्रूमध्य के पास रखिये / इसकी प्रथम एवं द्वितीय अंगुली को कपाल पर रखिये | अंगूठा दाहिने नथुने के बाजू में रहे / तृतीय अंगुली को बायें नथुने के बाजू में रखिये। अंगूठे से दाहिने नथुने के बाजू में दबाव डालते हुए उसे बंद कर लीजिये। बायें नथुने से शीघ्रतापूर्वक बीस बार श्वसन कीजिये / यह क्रिया उदर के प्रसार एवं आकुंचन के साथ जल्दी तथा लययुक्त हो / तत्पश्चात् एक लम्बा पूरक कीजिये / दोनों नथुनों को अंगूठे एवं तृतीय अंगुली से बंद रखिये / जालंधर एवं मूलबंध या इन दोनों में से किसी एक . का अभ्यास कीजिये / क्षमतानुसार श्वास रोकिये / फिर बंधों को शिथिल कर रेचक कीजिये। दाहिनी ओर से ठीक यही क्रिया कीजिये। - यह एक आवृत्ति है / तीन आवृत्तियों तक इसकी पुनरावृत्ति कीजिये / द्वितीय अवस्था पूर्व स्थिति में बैठिये / दोनों हाथों को घुटनों पर रखिये / इस बार दोनों नासिका-छिद्रों से एक साथ बीस बार श्वसन कीजिये / दीर्घ पूरक कीजिये / श्वास रोकिये तथा जालंधर एवं मूलबंध या किसी एक का अभ्यास कीजिये / आरामदायक अवधि के उपरांत बंधों को शिथिल कीजिये और रेचक कीजिये / यह अभ्यास की एक आवृत्ति है। अभ्यास की तीन आवृत्तियाँ कीजिये। यह भस्त्रिका प्राणायाम की सामाप्ति है। 279