________________ समय प्रारंभिक अभ्यासी उपरोक्त विधिपूर्वक ही अभ्यास करे / इस अभ्यास में स्थूल रूप से अभ्यास की अवधि पूर्ण हो जाती है। उच्च अभ्यासी पूरक एवं रेचक की संख्या पचास तक बढ़ा सकते हैं। प्रत्येक अवस्था में आवृत्तियों की संख्या पाँच तक बढ़ाई जा सकती है। टिप्पणी इस प्रक्रिया में फेफड़ों का उपयोग लोहार की धौंकनी की भाँति होता है। 'सावधानी बेहोशी या हाँफने की दशा यह सूचित करती है कि अभ्यास उचित विधिपूर्वक नहीं किया जा रहा है। बलपूर्वक श्वसन-क्रिया न कीजिये। शरीर अधिक हिलने न पाये। मुख को विकृत न कीजिये। विधिपूर्वक अभ्यास के पश्चात् भी यदि ऊपर वर्णित कोई संकेत प्राप्त हों तो अभ्यास रोक दीजिये तथा योग शिक्षक से निर्देश लीजिये / पूर्ण प्रक्रिया में शरीर शिथिल रहना चाहिए। - प्रत्येक आवृत्ति की समाप्ति पर विश्राम कीजिये / ' प्रारम्भ के कुछ हफ्तों तक भस्त्रिका का अभ्यास धीरे-धीरे कीजिये / फेफड़ों के शक्तिशाली बन जाने पर गति में क्रमशः वृद्धि कीजिये / सीमाएँ योग शिक्षक की सलाह के बिना उच्च रक्तचाप, चक्कर आने या दिल की किसी बीमारी में भस्त्रिका प्राणायाम का अभ्यास न कीजिये। प्रारम्भिक अभ्यासी योग्य शिक्षक के निर्देशन में ही अभ्यास करें। लाभ फेफड़ों को अनावश्यक वायु एवं जीवाणुओं से मुक्त कर उनकी शुद्धि करने के लिए एक आश्चर्यजनक प्राणायाम है। दमा, प्लूरसी, क्षयरोग जैसे रोगों का निवारण करता है। गले की सभी प्रकार की जलन तथा पुराने कफ को दूर करता है। जठराग्नि को उत्तेजित कर पाचन शक्ति बढ़ाता है। मन को स्थिरता एवं शांति देता है। 280