________________ भ्रामरी प्राणायाम भ्रामरी प्राणायाम भ्रामरी प्राणायाम विधि ध्यान के किसी आरामदायक आसन में बैठिये / मेरुदंड सीधा हो, मुँह सामने रहे / नेत्र बंद करें तथा शरीर को शिथिल कीजिये। पूर्ण अभ्यास में मुँह बंद रहेगा / दोनों नथुनों से पूरक कीजिये / अंतरंग कुम्भक लगाइये / जालंधर या मूलबंध का अभ्यास पाँच सेकेण्ड तक कीजिये / दोनों अभ्यास एक साथ भी किये जा सकते हैं। बंधों को मुक्त कर दोनों कर्ण छिद्रों को प्रथम अंगुलियों से बंद कीजिये / मुँह बंद रखते हुए ही दाँतों को विलग कीजिये। तत्पश्चात् मधुमक्खी की गुंजार सी दीर्घ अखंड ध्वनि करते हुए धीरे-धीरे अविरल रेचक कीजिये। मस्तिष्क में इस ध्वनि की तरंगों का अनुभव कीजिये। यह प्रथम आवृत्ति की समाप्ति है / पाँच आवृत्तियों से अभ्यास प्रारंभ कर क्रमशः आवृत्तियों की संख्या बढ़ाइये / लाभ मानसिक तनाव, क्रोध, चिंता, विक्षेपों को दूर करता है / रक्तचाप व गले के रोग को कम करता है तथा स्वर में मधुरता लाता है। आध्यात्मिक ध्वनि या नाद के प्रति जागरूक बनाता है। 278