________________ चतुर्थ अवस्था- अंतरंग एवं बहिरंग कुम्भक बायें नथुने से पूरक कीजिये। श्वास को भीतर रोकिये। दाहिने नथुने से रेचक कीजिये। श्वास को बाहर रोकिये। दाहिने नथुने से पूरक कीजिए। श्वास को भीतर रोकिये। बायें नथुने से पूरक कीजिये। श्वास को बाहर रोकिये। यह अभ्यास की एक आवृत्ति है। 15 आवृत्तियों तक अभ्यास कीजिये / पूरक, अंतरंग कुम्भक, रेचक व बहिरंग कुम्भक के अनुपात का प्रारम्भ 1:4:2:2 से कीजिये / धीरे - धीरे पूरक की अवधि में वृद्धि (5, 6 एवं 7) करें एवं इसी अनुपात से रेचक तथा कुम्भक की अवधि में भी वृद्धि करें। चतुर्थ अवस्था के उच्च अभ्यास . उच्च अभ्यासी इस सोपान में अन्तर्कुम्भक एवं बहिर्कुम्भक के साथ ही जालन्धर बन्ध या मूलबन्ध का अभ्यास कर सकते हैं। अभ्यास-क्रम एवं अभ्यास-काल आसन के उपरांत एवं ध्यानाभ्यास के पूर्व नाड़ी शोधन प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। . सावधानी क्षमतानुसार ही कुम्भक लगाइये। प्रथम अभ्यास में पूर्णता - प्राप्ति के पश्चात् ही आगे बढ़िये / हवादार कमरे में अभ्यास कीजिये / सीमाएँ सावधानीपूर्वक निपुण निर्देशक से ही सीखिये / 274