________________ द्वितीय अवस्था - अनुलोम - विलोम (इसका अभ्यास भी पन्द्रह दिनों तक प्रतिदिन करना चाहिए) . अंगूठे से दाहिने नासिका -छिद्र को बन्द कीजिये / बायें नासिका - छिद्र से पूरक कीजिये। . पूरक के अंत में तृतीय अंगुली से उस नासिका -छिद्र को बंद कीजिये / दाहिने नथुने को मुक्त कर दीजिये / अब इससे रेचक कीजिये। इसी नथुने से पूरक कीजिये। पूरक के अन्त में इसे अंगूठे से बन्द कर दीजिये। बा नथुने से दबाव हटाकर उससे रेचक कीजिये / यह एक आवृत्ति है। इस स्थिति में अभ्यासी पूरक एवं रेचक की लम्बाई की गणना 1 ॐ, 2 ॐ, 3 ॐ आदि की पुनरावृत्ति द्वारा कर सकते हैं। पूरक एवं रेचक की अवधि में समानता होनी चाहिए / उदाहरणार्थ - पाँच तक पूरक एवं पाँच तक रेचक या सुखपूर्वक जितनी गिनती तक पूरक एवं रेचक किया जा सके। किसी भी स्थिति में तनाव न पड़ने पाये। कुछ दिनों के उपरान्त पूरक एवं रेचक की अवधि बढ़ाइये / अनुपात 1:1 ही रहे अर्थात् छै की गिनती तक पूरक हो तो इतनी ही गिनती तक रेचक हो / इसमें पूर्णता - प्राप्ति कर सात की गिनती तक पूरक एवं इतनी ही गिनती तक रेचक कीजिये / शक्तिपूर्वक श्वास - क्रिया न करें / इस बात का ध्यान रहे कि गणना समान रूप से हो / श्वास की कमी की पूर्ति के लिए रेचक - काल में गणना अपेक्षाकृत जल्दी नहीं हो / किसी प्रकार की असुविधा का अनुभव होते ही तुरन्त पूरक एवं रेचक की अवधि कम कर दीजिये या कुछ देर के लिए अभ्यास बन्द कर दें / पन्द्रह दिनों या कुछ अधिक दिनों के अभ्यास के उपरांत द्वितीय स्थिति का त्याग कर तृतीय अवस्था का अभ्यास आरम्भ कर दीजिये। तृतीय अवस्था - अंतरंग कुम्भक (पूर्णता प्राप्ति तक अभ्यास कीजिये) दाहिने नथुने को बन्द कीजिये और बायें नथुने से पूरक कीजिये / 272