________________ के नियंत्रण के लिए निम्न विधि से कीजिए - प्रथम एवं द्वितीय अंगुलियों (तर्जनी एवं मध्यमा) को भ्रूमध्य पर रखिये / उन्हें इस स्थिति में रखिये कि सम्पूर्ण अभ्यास-काल में हटाना न पड़े। अंगूठे को दाहिने नासिका छिद्र के समीप रखिये ताकि आवश्यकता के अनुसार इसके द्वारा नासिका पर दाहिनी ओर दबाव डालकर श्वास को भीतर या बाहर रोका जा सके। इसी भाँति बाएँ नासिका-छिद्र में श्वास के नियंत्रण के लिए तृतीय अंगुली (अनामिका) को उसके बाजू में रखिये / अंगूठे से दाहिने नासिका - छिद्र को बन्द कीजिये। बाएँ नासिका-छिद्र से पूरक कीजिये / तत्पश्चात् उसी से रेचक कीजिये / पूरक एवं रेचक की गति सामान्य रहेगी। पाँच बार पूरक एवं रेचक कीजिये। बाएँ नासिका - छिद्र को बन्द करके दाहिनी नासिका से पूरक एवं रेचक क्रिया कीजिये। . इस समय भी श्वास की गति सामान्य रहेगी। पाँच बार पूरक एवं पाँच बार रेचक कीजिये / प्रत्येक नासिका से पाँच बार की गयी क्रिया को एक आवृत्ति कहते हैं। उपरोक्त क्रिया की कुल पच्चीस.आवृत्तियाँ कीजिये / अभ्यासी बलपूर्वक श्वास-प्रश्वास क्रिया न करें; साथ ही श्वास लेते एवं छोड़ते समय किसी प्रकार की ध्वनि भी नहीं उत्पन्न होनी चाहिए। प्रथम अवस्था- (ख) दाहिने छिद्र को बन्द कर बायें से पूरक कीजिये / फिर इसे बन्द कर दाहिने से रेचक कीजिये / याद रहे, पूरक हमेशा बायें से तथा रेचक दाहिने से हो / इसे पाँच बार कीजिए / इसके बाद बायें छिद्र को बन्द कर दाहिने से पूरक व बायें से रेचक कीजिये / इसे भी पाँच बार कीजिये। यह एक आवृत्ति हुई / ऐसा पाँच बार कीजिए / पन्द्रह दिनों के उपरान्त प्रथम अवस्था को छोड़कर द्वितीय अवस्था का अभ्यास कीजिये। 271