________________ उदर से छाती एवं छाती से उदर तक गति एक तरंग की भाँति हो / सम्पूर्ण क्रिया धीरे-धीरे बिना झटके के सम्पादित होनी चाहिए। .. पूरक एवं रेचक क्रिया उपरोक्त विधि के अनुसार होनी चाहिए / प्रारम्भ में प्रशिक्षण की कमी के कारण प्रतिदिन कुछ मिनट, विशेषकर प्राणायाम - अभ्यास के पूर्व इस श्वसन-क्रिया को चेतनापूर्वक करना होगा / अंत में यह स्वाभाविक बन जायेगी और पूरे दिन का अभ्यास किया जा सकेगा। इस अभ्यास से आपके जीवन में आश्चर्यजनक परिवर्तन आ जायेगा। सर्दी-जुकाम जैसी छोटी बीमारी के साथ ही फेफड़ों की सूजन आदि गम्भीर बीमारियों के प्रति भी आप कम ग्रहणशील रहेंगे। आप में अनन्त जीवन शक्ति का विकास होगा तथा आपको जल्दी थकान का अनुभव नहीं होगा। आपकी चिंतन-शक्ति विकसित होगी। चिंताओं एवं तनावों का प्रभाव आपके ऊपर नहीं पड़ेगा / आप में जीवन के प्रति शांतिपूर्ण प्रवृत्ति का विकास होगा। 267