________________ प्रदेश फूल जाता है तथा हाथ ऊपर उठ जाता है / जैसे-जैसे उदर बाहर की .ओर फूलता जाता है, वैसे-वैसे हृदय - पटल नीचे दबता जाता है / हृदय - पटल वह कड़ा मांसपेशीय-तंतु है जो फेफड़ों को उदरस्थ अंगों से विभाजित करता है। पूरक के समय इसकी स्थिति जितनी नीचे रहेगी, उतनी ही अधिक वायु का प्रवेश फेफड़ों में होगा और फेफड़े फैलेंगे। दीर्घ रेचक कीजिये / अब आप अवलोकन करेंगे कि उदर में संकुचन होता है; फलस्वरूप हाथ मेरुदंड की ओर नीचे आता है / उदर में उतार आने पर श्वास - पटल में चढ़ाव आता है / इस तरह फेफड़ों से अधिकतम मात्रा में वायु का निष्कासन होता है। -- अभ्यास काल में छाती या कंधों में हलचल न कीजिये। (2) छाती द्वारा श्वसन प्रथम प्रक्रिया की भाँति ही बैठिये या चित लेट जाइये / छाती या पसलियों का विस्तार करते हुए पूरक कीजिये / आप अनुभव करेंगे कि इस क्रिया से पसलियाँ ऊपर बाहर की ओर उठ जाती हैं। रेचक करने के साथ ही आप यह अवलोकन करेंगे कि पसलियों में उतार आ जाता है / इस श्वसन - काल में उदर - प्रदेश में गति न होने दीजिये | (3) यौगिक श्वसन उपरोक्त दोनों प्रकार की श्वसन - प्रक्रियाओं के योग से यह संभव है कि फेफड़ों में अधिकतम मात्रा में वायु का प्रवेश किया जाये एवं रेचकं द्वारा त्याज्य वायु का निष्कासन अधिक से अधिक मात्रा में किया जाये / इस प्रकार की श्वसन - क्रिया ही प्रत्येक व्यक्ति के लिए उपयोगी है। इसे पूर्ण यौगिक श्वसन कहते हैं। हर मनुष्य को इसी विधि से श्वास-प्रश्वास क्रिया करनी चाहिए। अभ्यास की विधि निम्नानुसार है क्रमशः उदर एवं छाती का धीरे - धीरे विस्तार करते हुए फेफड़ों में अधिक से अधिक वायु का प्रवेश कीजिये, जितना संभव हो सके / सर्वप्रथम छाती को, तत्पश्चात् उदर को शिथिल करते हुए रेचक कीजिये / अंत में उदर के स्नायुओं के आकुंचन पर बल डालिये ताकि फेफड़ों से अधिक से अधिक वायु का निष्कासन हो जाये / 266