________________ गोरक्षासन , गारक्षासन गोरक्षासन विधि मूलबन्धासन की तरह एड़ियों को समीप रखिये / एड़ियों को दोनों जाँघों के मध्यवर्ती स्थल के नीचे न रखकर उन्हें नाभि की ओर उठा कर सामने रखिये / पैरों के अग्र भाग भूमि पर रहेंगे। दोनों हाथों की कलाइयों को कैंचीनुमा स्थिति में रखकर उनसे एड़ियों को पकड़िये / दाहिने हाथ की अंगुलियाँ बायीं एड़ी पर एवं बायें हाथ की अंगुलियाँ दाहिनी एड़ी पर रहेंगी / मेरुदण्ड सीधा हो व मुख सामने रहे। श्वास अन्तिम अवस्था में सामान्य / एकाग्रता अन्तिम स्थिति में नासिकाग्र दृष्टि का अभ्यास कीजिये। सावधानी इस आसन के लिये पैरों एवं पंजों का लचीला होना आवश्यक है। लाभ आध्यात्मिक : जो व्यक्ति सुखपूर्वक लम्बी अवधि तक अन्तिम अवस्था में : रह सकते हैं; वे इस आसन का उपयोग ध्यान के लिये कर सकते हैं। इसका नामकरण महान योगी 'गोरखनाथ ' के नाम पर हुआ हैं। शारीरिक : पैरों एवं पंजों को लचीला बनाता है। .. 252