________________ मूलबन्धासन . . . . . .. . . . . ........ - -.. .. -. .... . ... . . . - .. . . ." . . . . .. ....... . on-... .......... ... . . . : .. . मूलबन्धासन विधि दोनों पैरों को सामने फैलाकर बैठ जाइये। घुटनों को मोड़िये तथा तलवों को मिलाकर गुदा-द्वार तथा लिंग प्रदेश के मध्य नीचे रखकर एड़ियों पर बैठ जाइये / एड़ियों का दबाव दोनों जाँघों के मध्य में रहे। एड़ियों का रुख सामने या पीछे की ओर रह सकता है। पैरों के तनाव - मुक्त हो जाने के उपरांत क्रिया की पुनरावृत्ति कीजिये / एकाग्रता अंतिम स्थिति में नासिकाग्र दृष्टि का अभ्यास कीजिये / सावधानी - पैरों एवं पंजों पर तनाव न पड़ने पाये / लाभ आध्यात्मिक : यह ऐसा अभ्यास है जिसमें मूलबंध स्वतः लग जाता है। * ब्रह्मचर्य - पालन के लिये यह शक्तिशाली आसन है। शारीरिक : लैंगिक तथा निम्न -अंगों को शक्ति प्रदान करता है। 251