________________ समय जितनी देर संभव हो सके / एकाग्रता संतुलन पर। क्रम आसन - क्रम के अंत में अभ्यास कीजिये / / इस अभ्यास के उपरांत सामने झुकने वाला कोई आसन कीजिये; जैसे पश्चिमोत्तानासन / इस आसन का अभ्यास कुछ सेकेण्ड तक कीजिये। तत्पश्चात् आधा मिनट ताड़ासन कर अंत में शवासन कीजिये। सावधानी आसन में पूर्ण सफलता - प्राप्ति तक इसे दीवाल के समीप कीजिये। अभ्यास - स्थान के समीप किसी प्रकार का सामान न रहे। लाभ शरीर में स्थित 'प्राणशक्ति' को पुनर्संगठित करता है जो कि शारीरिक ह्रास को रोकती है। नाड़ियों में स्थिरता लाता है। मस्तिष्क तथा पीयूष ग्रंथि में प्रचुर मात्रा में रक्त संचार करता है। पैरों के निचले प्रदेश तथा निम्न उदर को जमे हुये रक्त से मुक्त करता है। इस प्रकार बवासीर तथा फैली हुई नसों के लिये लाभप्रद है। लैंगिक ग्रंथियों को संतुलित करता है तथा शुद्ध रक्त-संचार द्वारा उनके दोषों का निवारण करता है। स्नायुओं की मालिश होती है तथा कशेरुकाओं का लचीलापन दूर होता टिप्पणी वृश्चिकाकृति के कारण ही इसका यह नाम नहीं रखा है, वरन् इसलिये रखा गया है कि इसके अभ्यास द्वारा अभ्यासी ग्रीवा -प्रदेश के अमृत - केन्द्र तथा विषतत्वों पर नियंत्रण प्राप्त करता है। 244