________________ प्रारम्भिक समूह के आसन नये अभ्यासियों, दुर्बल तथा बीमार लोगों के लिये हैं जो कि कठिन आसनों को करने में असमर्थ हैं। ये आसन शरीर एवं मन को उच्च आसनों एवं ध्यानाभ्यासों हेतु उपयुक्त बनाने के लिये हैं। ये आसन किसी भी हालत में उन्नत आसनों से निकृष्ट नहीं हैं / ये शारीरिक स्वास्थ्य को भी बढ़ाते हैं / इस समूह में पवन - मुक्तासन, ध्यान के पूर्व करने वाले आसन तथा ध्यान के आसन हैं। मध्यम समूह के आसन थोड़े कठिन हैं / ये उन लोगों के लिए हैं जो प्रारम्भिव समूह के आसनों को आसानी से कर सकते हैं / इस समूह में स्थिरता, एकाग्रता तथा श्वास-क्रिया के साथ एकीकरण करने वाले आसन हैं जैसे- सूर्य नमस्कार, योगमुद्रा आदि / उन्नत श्रेणी के आसन उन्हीं लोगों के लिए हैं जिन्होंने अपनी मांसपेशियों, नाड़ी - संस्थानों तथा मध्यम वर्गीय आसनों पर दक्षता प्राप्त कर ली है। लोगों को इन आसनों को करने के लिये एकाएक उतावला नहीं होना चाहिये, बल्दि किसी योग शिक्षक की सहायता लेनी चाहिये। : इन तीनों समूहों के आसनों को उनके अभ्यास करने की गति के अनुसार पुनः दो भागों में विभक्त किया गया है। गतिशील अभ्यास में वे आसन आते हैं जिनमें शरीर शक्ति के साथ गतिशील रहता है / वास्तव में ये व्यायाम हैं, फिर भी इस पुस्तक में हम इनका उल्लेख आसनों के रूप में करेंगे / यद्यपि 'आसन' शब्द का अर्थ ही 'स्थिर - स्थिति है उनका उद्देश्य मांसपेशियों को विकसित करना अथवा व्यक्ति को हष्ट-पुष् बनाना न होकर शरीर को लचीला बनाना, रक्त- संचार की गति को तीव्र करना, शरीर को गर्म रखना और शरीर के विभिन्न भागों में रुके हुए रक्त मे संचार लाना है। वे चमड़ी और मांसपेशियों को पुष्ट रखते हैं, फेफड़ों को शक्ति प्रदान करते हैं और पाचन व मल - निष्कासन प्रणालियों की गति के बढ़ा देते हैं। वे खास तौर से नए अभ्यासियों के लिये लाभप्रद हैं / सूर्य नमस्कार, पवनमुक्तासन समूह, गतिशील पश्चिमोत्तानासन, गतिशील भुजंगासन आदि गतिशील अभ्यासों के अन्तर्गत हैं। स्थिर अभ्यासों को शरीर में बहुत ही कम या बिना गति के किया जाता है अक्सर कुछ या अधिक समय के लिये एक ही स्थिति में रहा जाता है / इनक उद्देश्य आंतरिक अंगों, ग्रन्थियों और मांसपेशियों की हल्की मालिश के.साथ. साथ सम्पूर्ण शरीर के स्नायुओं को शिथिल करना होता है / वे मुख्य रूप से