________________ उनका अस्तित्व था। परम्परा और धार्मिक पुस्तकों के अनुसार आसनों सहित योग विद्या की खोज शिवजी ने की / उन्होंने सभी आसनों की रचना की और अपनी प्रथम शिष्या पार्वती को उन्होंने सिखलाया। ऐसा कहा जाता है कि प्रारंभ में 84,00,000 आसन थे जो 84,00,000 योनियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को जन्म-मरण के चक्र से मुक्त होने के पूर्व उनसे अवश्य . गुजरना पड़ता है। ये आसन प्राणी की प्रारम्भिक अवस्था से मुक्त अवस्था तक के प्रगतिशील विकास का प्रतिनिधित्व करते हैं / ऐसा विश्वास किया जाता है कि एक जन्म से दूसरे जन्म की पूर्व निर्धारित प्रगति को एक ओर छोड़कर इन सभी आसनों को करते हुए व्यक्ति एक ही जीवन काल में इन सभी योनियों से गुजर कर आगे बढ़ सकता है। शताब्दियों से इन आसनों के रूप में परिवर्तन एवं सुधार होता रहा है और महान ऋषियों और योगियों ने इनकी संख्या कम कर दी है। अब ज्ञात आसनों की संख्या कुछ सौ ही रह गई है। इनमें से केवल चौरासी की विस्तृत व्याख्या हुई है और सामान्य रूप से आधुनिक व्यक्ति के लिये केवल तीस आसन ही उपयोगी समझे गये हैं। शिवजी को परम चेतना का प्रतीक माना गया है मानो परम चेतना साक्षात् शिव के रूप में पृथ्वी पर उतरी हो / जब व्यक्ति की आत्मा सांसारिक बन्धनों से मुक्त होती है तब उसे शुद्ध चेतना का स्तर प्राप्त होता है / पार्वती को अखिल ब्रह्माण्ड की जननी माना गया है। वे परम ज्ञान की अवतार हैं | उनकी कृपा से व्यक्ति मुक्त होकर परम चेतना से एकाकार हो जाता है। ऐसा कहा जाता है कि अपने समस्त बच्चों के प्रति प्रेम और दया के कारण उन्होंने अपने गुप्त ज्ञान को तंत्र शास्त्र के रूप में दिया / वे तंत्र की प्रथम गुरु हैं। मातृ पक्ष हम सभी के अन्दर स्थित गुप्त शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। यह महान् शक्ति 'कुण्डलिनी' के नाम से भी जानी जाती है। - तंत्र दो शब्दों के योग से बना है- 'तनोति एवं त्रायति'। इन दो शब्दों का अर्थ क्रमशः विस्तार एवं मुक्ति है। अतः 'तंत्र' चेतना के विस्तार का विज्ञान है जिसके द्वारा हम उसे उसकी सीमाओं से मुक्त कर देते हैं। योग तंत्र की ही एक शाखा है, हम योग को तंत्र से पृथक नहीं कर सकते / दोनों की उत्पत्ति शिव और शक्ति से हुई है / चेतन और जड़ को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है। अग्नि और ताप की तरह दोनों ही एक-दूसरे के