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________________ बनाने के असंख्य साधन हैं, परंतु बिरले लोग ही इस विलास-सामग्री का आनन्द ले पाते हैं / यद्यपि यह बात एकदम उल्टी लगती है, किन्तु है सत्य / बहुत से लोगों के पास धन है लेकिन वे वास्तव में निर्धनों की-सी जिन्दगी जीते हैं / जीवन उनके लिये नीरस हो गया है / उसे भोगने की शक्ति वे खो चुके हैं। जीवन के इस नीरस और निर्जीव ढंग को आसनों द्वारा सुधारा जा सकता है / आसनों के अभ्यास से आप एक नये जीवन का अनुभव करेंगे / आप पहले की अपेक्षा अधिक शक्ति का अनुभव करेंगे। जीवन के प्रति एक व्यापक दृष्टिकोण. उत्पन्न होगा और दूसरों की समस्याओं को आप अधिक सरलतापूर्वक समझ सकेंगे / धीरे- धीरे 'विश्व बन्धुत्व' की भावना जागृत होने लगेगी। वे व्यक्ति जो अपने मस्तिष्क को शुद्ध करके विचार-शक्ति को बढ़ा सकेंगे, उनमें अन्तर्दृष्टि विकसित होने लगेगी / जो अपनी रोजी-रोटी मेहनतमजदूरी करके कमाते हैं, वे भी दिन भर की थकान और तनावों से छुटकारा पाकर अपने आप को स्वस्थ रख सकते हैं। आजकल बहुत से लोग, विशेषतः युवा व्यक्तियों ने अपने जीवन में कुछ अर्थ और व्यवस्था खोजने के लिये मादक पदार्थों जैसे एल. एस. डी.; गाँजा, भाँग, शराब आदि का प्रयोग करना शुरू कर दिया है / ऐसे लोग जीवन का अर्थ समझ सकें, इसके लिए योग (आसनों सहित) ही एक उचित मार्ग है। यह अनुभव करते हुए कि मादक द्रव अपने प्रभाव में सीमित हैं, वे उनसे छुटकारा भी पा सकेंगे। योग का नियमित अभ्यास उन्हें अंतिम लक्ष्य तक ले जायेगा जिसके परे कोई लक्ष्य नहीं है। ऐतिहासिक एवं पौराणिक आधार - शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक संस्कृति के रूप में योगासनों का इतिहास समय की अनन्त गहराइयों में छुपा हुआ है। मानव जाति के प्राचीनतम साहित्य वेदों में इनका उल्लेख मिलता है / वेद आध्यात्मिक ज्ञान के भण्डार हैं। उनके रचयिता अपने समय के महान् आध्यात्मिक व्यक्ति थे / कुछ लोगों का ऐसा भी विश्वास है कि योग विज्ञान वेदों से भी प्राचीन है। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो (जो अब पाकिस्तान में हैं ) में पुरातत्वविभाग द्वारा की गई खुदाई में अनेक ऐसी मूर्तियाँ मिली हैं जिनमें शिव और पार्वती (उनकी आध्यात्मिक जीवन संगिनी) को विभिन्न योगासनों में अंकित किया गया है। ये भग्नावशेष प्राग्वैदिक युग के लोगों के निवास स्थान रहे हैं। अतः सिन्ध उपमहाद्वीप में आर्य सभ्यता के प्रसार के पूर्व निश्चित रूप से
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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