SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वर्णन मिलता है। अतः हम कह सकते हैं कि आसन स्वयं आध्यात्मिक अनुभव भले ही न करा सकें परन्त वे आध्यात्मिक मार्ग का एक सोपान हैं। कुछ लोगों का भ्रम है कि आसन केवल शारीरिक क्रियायें हैं तथा आध्यात्मिक मार्ग में उन्नति से उनका कोई सम्बन्ध नहीं है / यह धारणा पूर्णतः गलत है क्योंकि आसनों में दक्षता प्राप्त किये बिना आध्यात्मिक शक्ति का जागरण असम्भव है। क्या आधुनिक व्यक्ति के लिये आसन उपयोगी हैं? हाँ, निश्चित रूप से / इस आधुनिक युग में हमारा जीवन पूर्णतः मशीनों पर निर्भर करता है / हमारी खाने की आदतें, हमारे रहने का रंग-ढंग बिल्कुल कृत्रिम है। हमारा जीवन प्रकृति से बहुत दूर हट चुका है और अनेक रूपों में उसने अपने प्राकृतिक सौन्दर्य को खो दिया है। हमारा भोजन बनावटी रसायनों का मिश्रण रह गया है, जो धीरे- धीरे लेकिन निश्चित रूप से हमारे शरीर एवं व्यक्तित्व पर घातक प्रभाव डालता है। योगासनों का अभ्यास हमें पुनः अपना प्राकृतिक स्वास्थ्य और सौन्दर्य प्रदान कर सकता है। शारीरिक आराम और इन्द्रिय सख के लिये आधुनिक मनुष्य के पास अनेक सुविधायें हैं / वह कार्यालय में काम करता है, मोटे-मोटे फोम के गद्दों पर सोता है, हर जगह कार से यात्रा करता है, मनोरंजन के लिये सिनेमा या रात्रि-क्लबों में जाता है और आधुनिक जीवन के नकारात्मक प्रभावों पर काबू पाने के लिये शान्ति और विश्राम की खोज में नींद की गोलियाँ तथा अन्य प्रकार की दवाइयाँ लेता है। लेकिन शान्ति, विश्राम और सुख के बजाय उसे अनेक प्रकार के शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक तनावों का सामना करना पड़ता है। समाज की दुश्चिन्ताओं और कुंठाओं के भार से मुक्त होने का उसे कोई रास्ता नहीं मिलता / क्या ऐसा कोई उपाय है जिससे उसे आराम मिल सके ? हाँ, योगाभ्यास के द्वारा / योगासनों के अभ्यास से वह आधुनिक सभ्य जीवन के रोग-जैसे कब्ज, गठिया, जकड़न, निराशा, कुण्ठा, तनाव आदि से अपने आप को मुक्त कर सकता है। आसनों के अभ्यासी जीवन के उत्तरदायित्वों एवं समस्याओं का सामना करने के लिये अपने में अधिक शक्ति और स्फूर्ति पायेंगे। पारिवारिक एवं सामाजिक सम्बन्ध स्वतः अधिक सामंजस्यपूर्ण हो जायेंगे। वैज्ञानिक आविष्कारों के इस आधुनिक युग में जीवन को आराममय 4
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy