________________ उचित मात्रा में रस का स्राव होने लगता है। इसका सुप्रभाव हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ जीवन के प्रति हमारे मानसिक दृष्टिकोण पर भी पड़ता है.। यदि किसी एक ग्रन्थि का भी कार्य ठीक से संचालित न हो तो इसका कुप्रभाव स्वास्थ्य पर स्पष्ट दिखाई देता है / अतः यह बहुत महत्वपूर्ण विषय है कि इस प्रणाली को सुचारु रूप से संचालित रखा जाये / रोग-पीड़ित अंगों को निरोग कर, पुनर्जीवित कर सामान्य कार्य के योग्य बनाया जा सकता है। मांसपेशियाँ, हड्डियाँ, स्नायुमंडल, ग्रंथि प्रणाली, श्वसन प्रणाली, उत्सर्जन प्रणाली; रक्त संचालन प्रणाली सभी एक-दूसरे से संबंधित हैं / वे एक-दूसरे की सहयोगी हैं, एक-दूसरे का विरोध नहीं कर सकतीं। आसन शरीर को लोचदार तथा परिवर्तित वातावरण के अनुकूल ढालने के योग्य बनाते हैं। पाचन क्रिया तीव्र हो जाती है। उचित मात्रा में पाचक रस तैयार होता है / अनुकंपी (sympathetic) तथा परानुकंपी (parasympathetic) तंत्रिका प्रणालियों में संतुलन आ जाता है.। फलस्वरूप इनके द्वारा नियंत्रित आंतरिक अंगों के कार्य में संतुलन आता है। - सारांशतः हम कह सकते हैं कि आसनों के अभ्यास से शारीरिक स्वास्थ्य बना रह सकता है तथा अस्वस्थ शरीर को सक्रिय एवं रचनात्मक कार्य करने की प्रेरणा मिलती है। मानसिक : आसन मन को शक्तिशाली बनाता है और दुख-दर्द सहन करने की शक्ति प्रदान करता है। दृढ़ता और एकाग्रता की शक्ति विकसित करता है / आसनों के नियमित अभ्यास से मस्तिष्क शक्तिशाली एवं संतुलित बना रहता है / बिना विचलित हुए आप शान्त मन से संसार के दुख, चिन्ताओं एवं समस्याओं का सामना कर सकेंगे / कठिनाइयाँ पूर्ण मानसिक स्वास्थ्य हेतु सीढ़ियाँ बन जाती हैं। आसनों का अभ्यास व्यक्ति की सुप्त शक्तियों को जागृत करता है। उसमें आत्मविश्वास आता है, व्यवहार तथा कार्यों से वह दूसरों को प्रेरणा देने लगता है। - आध्यात्मिक : आसन राजयोग के अष्टांग मार्ग का ततीय सोपान है / इस दृष्टि से इसका कार्य समाधि की ओर अग्रसर करने वाले उच्च यौगिक अभ्यास - प्रत्याहार, धारणा, ध्यान आदि के लिये शरीर को स्थिर बनाना है / हठयोग का गहन संबंध शरीर को उच्च आध्यात्मिक प्रक्रिया के लिये तैयार करने से है / इसमें आसनों द्वारा शरीर शुद्धि को विशेष महत्व दिया गया है / हठयोग प्रदीपिका तथा घेरण्ड संहिता जैसे प्राचीन ग्रंथों में इनका विस्तृत