________________ कार्य करना पड़ता है तथा श्वास-प्रश्वास प्रणाली का कार्य भी अपेक्षाकृत बढ़ जाता है। इस प्रकार प्राण शक्ति का ह्रास होता है। इन व्यायामों के अभ्यासोपरान्तं एक युवक अपने को पूर्ण स्वस्थ एवं शक्तिशाली अनुभव कर सकता है, परन्तु बढ़ती उम्र के साथ उसके विभिन्न अंगों की कार्य प्रणाली मंद पड़ जाती है। हड्डियों के संधि-स्थल में स्थित कोमल अस्थियों के अधिक प्रयोग के कारण शरीर के विभिन्न अंगों की लोच समाप्त होने लगती है और गठिया आदि की समस्यायें उत्पन्न होने लगती हैं। असामान्य रूप से विकसित मांसपेशियाँ अपना सुदृढ़ आकार खोकर ढीली पड़ने लगती हैं, उनमें स्थित तंतु चर्बी के रूप में परिवर्तित ह्ये जाते हैं / शरीर - गठन के अभ्यासों का त्याग कर देने पर युवावस्था में बढ़ी हुई मांसपेशियों के स्थान पर तेजी से चर्बी बढ़ने लगती है। __ श्रमसाध्य व्यायाम तथा वजन उठाने वाले अभ्यास और शरीर गठन की अन्य विधियाँ प्रत्येक व्यक्ति के लिये उपयोगी नहीं होतीं। बीमार या दुर्बल व्यक्ति इनका अभ्यास नहीं कर सकता / वृद्ध या बच्चे निश्चित रूप से इनका अभ्यास नहीं कर सकते / क्या आसन इनसे भिन्न हैं ? हाँ, आसन इनसे पूर्णतः भिन्न हैं तथा अधिक लाभप्रद भी हैं / आसनों का अभ्यास आराम सें, धीरे-धीरे व एकाग्रता के साथ किया जाता है। इस प्रकार बाह्य एवं आंतरिक दोनों ही संस्थानों पर प्रभाव पड़ता है। अतः स्नायुमंडल, अंतःस्रावी ग्रंथियों और आंतरिक अंग तथा मांसपेशियाँ सुचारु रूप से कार्य करने लगती हैं। इन आसनों का प्रभाव शरीर एवं मन पर पड़ता है जिससे अनेक दुर्बलताओं से मुक्ति मिलती है। इनका अभ्यास स्वस्थ, अस्वस्थ, युवा, वृद्ध सभी कर सकते हैं / एकाग्रता एवं ध्यान के लिए ये बहुत उपयोगी हैं। वास्तव में व्यायाम की अन्य विधियाँ शरीर में विषैले पदार्थों की वृद्धि करती हैं जबकि योगासनों का अभ्यास इनकी मात्रा को न्यून करता है। अब आप स्वयं से प्रश्न कीजिये- 'यदि आसनों में व्यक्तित्व के प्रत्येक पहलू को प्रभावित करने की क्षमता है तो मैं शारीरिक व्यायाम की अन्य विधियों का अभ्यास क्यों कर रहा हूँ ?' सामान्य लाभ शारीरिक : आसनों से शरीर की सबसे महत्वपूर्ण अन्तःस्रावी ग्रन्थि प्रणाली' नियंत्रित एवं सुव्यवस्थित होती है। परिणामतः समस्त ग्रंथियों से