________________ सन्तुलन के आसन इस वर्ग के अभ्यास शारीरिक सन्तुलन के भावों को विकसित करते हैं / इसके अतिरिक्त विभिन्न आसनों के वर्णन में बताये गये लाभ प्रदान करते हैं। इनके अभ्यास से शारीरिक अंगों के पारस्परिक सम्बन्धों के विकास में मदद मिलती है; फलतः अभ्यासी में अंगों की भौतिक गतिशीलता की क्षमता एवं एकाग्रता बढ़ती है। कई व्यक्तियों में व्यर्थ ही अंग-विशेष को हिलाते रहने की आदत होती है / इस क्रिया से कार्य का सम्पादन कम एवं शक्ति का ह्रांस अधिक होता है। इन आसनों के अभ्यास से मस्तिष्क केन्द्र (सेरीबेलम) का विकास होता है। शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों की गतिशीलता में वृद्धि होती है, हलचल उचित विधि से होती है तथा उनमें समता आती है। शारीरिक सन्तुलन तथा इन आसनों की सफलता के लिये एकाग्रता की परम आवश्यकता है। अतः स्वाभाविकतः इनके अभ्यास से, एकाग्रता की शक्ति बढ़ती है जो अन्य क्षेत्रों में भी उपयोगी है। इन अभ्यासों का प्रभाव स्नायु-संस्थान पर भी अच्छा पड़ता है। परिणामतः मानसिक तनाव, परेशानी एवं चिन्ता का निवारण होता है। यदि व्यक्ति विशेष को किसी समय तनाव का अनुभव हो रहा हो तो इस वर्ग के एक- दो आसनों का अभ्यास करना लाभप्रद होगा। साधारणतः सामान्य जीवन में मनुष्यों को शारीरिक सन्तुलन का अच्छा ज्ञान नहीं होता है / इसलिये ‘अभ्यास के प्रारम्भ में इन आसनों के अभ्यास में कठिनाई का अनुभव होगा। शरीर में समायोजन-क्षमता बहुत रहती है; अतः कुछ हफ्तों के नियमित अभ्यासोपरान्त ही सन्तुलन - ज्ञान में वृद्धि हो जाती है। ____इन आसनों की सिद्धि के लिये दृष्टि की एकाग्रता महत्वपूर्ण है / इसके लिये सरलतम विधि है कि अभ्यास करते समय दृष्टि को दीवाल पर बने किसी काले बिन्दु पर केन्द्रित किया जाये / इस अभ्यास से कठिनतम आसन भी लम्बी अवधि तक किये जा सकते हैं। . 210