________________ द्विपाद कन्धरासन - -.. -... -. ... ....... . . . - -... द्विपाद कन्धरासन दिपाद कन्धरासन विधि पैरों को सीधे रखकर पीठ के बल लेट जाइये / हाथ बाजू में रहें। एक पैर को उसी ओर के हाथ के नीचे से ले जाकर सिर के पीछे रखें / यह क्रिया दूसरे पैर से भी कीजिये / तनाव न पड़ने दीजिये / पैरों को सिर के पीछे कैंचीनुमा स्थिति में रखने का प्रयत्न कीजिये / हाथों को सामने की ओर प्रार्थना की स्थिति में रखिये / यह आसन की अन्तिम अवस्था है। शरीर का शिथिलीकरण कीजिये। . नेत्रों को बन्द कर धीमी गति से श्वास लीजिये / समय जितनी देर सुविधापूर्वक रह सकें। / एकाग्रता आध्यात्मिक : स्वाधिष्ठान चक्र पर | क्रम __इसके पश्चात् पीछे मुड़ने वाला आसन कीजिये / सीमाएँ स्लिप डिस्क, साइटिका या पीठ की गंभीर बीमारी में न करें। स्नायु-संस्थान के नियंत्रण में सहायता पहुँचाता है। वृक्क, यकृत, क्लोम, तिल्ली, आँत आदि उदरस्थ अंगों को शक्ति प्रदान करता है / प्रजनन - संस्थान की कार्यक्षमता बढ़ाता है। निम्न उदर-प्रदेश के अंगों को क्रियाशील बनाता है। प्रजनन ग्रन्थियों में सन्तुलन लाकर . अभ्यासी को शक्ति प्रदान करता है। 209