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________________ शलभासन शलभासन विधि हाथों को जाँघों के नीचे रखिये / पैरों को खींचिये व हाथों को तानिये / पेट व पैरों को बिना मोड़े हुए ऊपर उठाइये / इसी स्थिति में कुछ देर रुकिये / फिर पूर्व स्थिति में वापस लौटिये। .. श्वास जमीन पर लेटी हुई स्थिति में श्वास अंदर लीजिए। अन्तिम स्थिति में श्वास को अन्दर रोक कर रखिये। वापस लौटते समय श्वास बाहर छोड़िये। . आवृत्ति 5 बार कीजिए। एकाग्रता आध्यात्मिक : विशुद्धि चक्र पर। शारीरिक : उदर, पीठ के निचले हिस्से या हृदय पर / भुजंगासन व धनुरासन के साथ / / सीमाएँ पेप्टिक अल्सर, हर्निया व आँत के कष्ट से पीड़ित या कमजोर हृदय वालों को इसका अभ्यास बिना सलाह के नहीं करना चाहिये। लाभ उदर व उससे संबंधित अंगों पर विशेष प्रभाव डालता है। मेरुदण्ड के निचले हिस्से को पुष्ट करता है, साइटिका नाड़ी को खींचता व हल्का करता है तथा हृदय को मजबूत बनाता है। 148
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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