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________________ . पीछे की ओर झुकने वाले आसन इस अध्याय में दिये गये आसन रीढ़ को पीछे की ओर झुकाते हैं और साथ ही साथ उदर व उससे संबंधित स्नायुओं पर अच्छा तनाव डालते हैं। इस तरह वे सारे स्नायु जो रीढ़ को नियंत्रित करते हैं, भलीभाँति खिंचते और विकसित होते हैं तथा मजबूत बनते हैं। इन स्नायुओं के मजबूत होने से पीठ या कमर से संबंधित किसी भी प्रकार के रोगों की संभावना नहीं रहती, क्योंकि स्नायओं में इस प्रकार रोगों को रोकने की व उनसे संघर्ष कर सकने की शक्ति आती है / सुषुम्ना नाड़ी (जो कि रीढ़ की कशेरुकाओं के बीच के स्थान से निकलती है) पर भी अच्छा दबाव पड़ता है व उसकी सफाई और विकास होता है / यह भी अपने आप में एक बहुत बड़ा लाभ है क्योंकि यह विशेष नाड़ी शरीर के करीब-करीब सभी अंगों व स्नायुओं से संबंधित है। सुषुम्ना नाड़ी से जुड़ी हुई रीढ़ की हड्डी के पीछे शरीर की अनुकंपी नाड़ियों (sympathetic nerve chain) की संरचना है जो कि परानकंपी तंत्रिका तंत्र की नाड़ियों (parasympathetic nerve chain) के साथ शरीर के सारे अंगों को ठीक रखती व उन्हें भली प्रकार कार्य करने लायक बनाती है / दूसरे शब्दों में 'अनुकंपी तंत्रिका तंत्र' शरीर के सभी अंगों को अच्छा कार्य करने के लिये उत्तेजित करता है जबकि 'परानुकंपी तंत्रिका तंत्र' शरीर के अंगों की कार्य कुशलता को उस सीमा तक उत्तेजित नहीं करता / परिणामस्वरूप शरीर के सारे अंग.संतुलित रूप से कार्य करते रहते हैं तथा आंतरिक एवं बाह्य रूप से आयी हुई किसी भी परिस्थिति को भली प्रकार सँभालते व शरीर का कुशलतापूर्वक संचालन करते रहते हैं। पीछे की ओर झुकने वाले सभी आसन इन समस्त स्नायुओं व शिराओं पर अच्छा प्रभाव डालते हैं जिससे सभी अंगों की कार्यक्षमता में अपूर्व वृद्धि होती है और परिणामतः शरीर हल्का व स्वस्थ होता है। - पीठ में रक्त का प्रवाह स्वाभाविक रूप से धीमा होता है। इससे अशुद्ध रक्त स्वयमेव इन स्थानों में इकट्ठा हो जाता है और शरीर के अंगों एवं नाड़ियों की कार्य क्षमता को धीरे-धीरे कम कर देता है / पीछे झुकने वाले आसन इस जमे हुए रक्त को भली प्रकार प्रवाहित करने और इसके स्थान पर ओषजनयुक्त शुद्ध रक्त को पहुँचाने के लिए बहुत ही उपयोगी हैं। 141
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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