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________________ सूर्य नमस्कार उनमें पुनः सन्तुलन लाकर उन अनेक रोगों से छुटकारा दिलाने में सहायक है जो मानवता को शैतान की तरह घेरे रहते हैं। अशुद्ध रक्त, नलिकाविहीन ग्रन्थियों के सामान्य से कम या अधिक क्रियाशील होने या अधिक पाचक रसों के स्राव से अनेक बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। इस प्रकार की त्रुटिपूर्ण कार्य-प्रणाली को सुधारने या रोगों के कारणों को दूर करने में सूर्य नमस्कार किसी भी प्रकार से कम सहायक नहीं है / आधुनिक युग का मनुष्य प्रायः बैठे रहकर ही अपना समय व्यतीत करता है। उसकी मांसपेशियों को सही व्यायाम मिले, इसके लिए सूर्य नमस्कार से उत्तम कोई अन्य अभ्यास नहीं है। इसके दैनिक अभ्यास से शरीर पूर्ण स्वस्थ रहेगा व अतिरिक्त चर्बी हटेगी। अभ्यासी को शारीरिक व मानसिक स्तर पर नयी शक्ति व स्फूर्ति मिलेगी / वह अनुभव करेगा कि उसकी विचारशक्ति तेज व पैनी हो रही है। इस आसन में आमाशय के सभी अंग बारी - बारी से फैलते और संकुचित होते हैं। फलतः यदि वे अंग ठीक से कार्य नहीं कर रहे हैं तो कुछ समय में सामान्य ढंग से क्रियाशील हो जाते हैं। अनेक व्यक्ति ठीक से श्वास नहीं लेते हैं / सूर्य नमस्कार के क्रमों के साथ श्वास-प्रश्वास क्रम को जोड़ा गया है। अतः यह निश्चित हो जाता है कि जैसी गहरी और लयपूर्ण श्वास लेनी चाहिए, वैसी अभ्यासी सूर्य नमस्कार के साथ प्रतिदिन कुछ मिनटों के लिए अवश्य लेगा / इससे फेफड़ों में भरी दषित व कीटाणुओं से युक्त स्थिर वायु निकलेगी और उसके स्थान पर कुछ शुद्ध ऑक्सीजन मिश्रित वायु फेफड़ों को मिलेगी। ऑक्सीजन मिश्रित शुद्ध रक्त जब निरन्तर मस्तिष्क को मिलता है तो मस्तिष्क की स्थिति भी शुद्ध, स्वस्थ और निर्मल हो जाती है। पसीना निकलना शरीर का एक प्रमुख कार्य है क्योंकि इससे दूषित तत्त्व बाहर निकलते हैं। लेकिन बहुत से लोग इतनी मेहनत नहीं करते कि पसीना निकले / नतीजा यह होता है कि ये दूषित तत्त्व शरीर में ही रहते हैं और रोगों को उत्पन्न करते या बढ़ाते हैं। कम से कम चर्म-विकार तो पैदा कर ही देते ऐसे अनेक व्यक्तियों ने सूर्य नमस्कार के अभ्यास से स्वस्थ और सुन्दर शरीर प्राप्त किया है। उनके समस्त प्रकार के चर्म - विकार दूर हो गये / इस तेजी से भागते आज के संसार में स्नायविक समस्याओं, तनावों, आशंकाओं से मुक्ति दिलाने में सूर्य नमस्कार के नियमित अभ्यास से बढ़कर और क्या हो सकता 124
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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