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________________ सूर्य नमस्कार इस गतिशील अभ्यास को परम्परा से योग अभ्यासों के अंतर्गत नहीं माना गया है लेकिन शरीर के सभी जोड़ों व मांसपेशियों को ढीला करने का तथा आंतरिक अंगों की मालिश करने का यह एक इतना प्रभावशाली ढंग है कि इसे इस पुस्तक में स्थान दिया गया है। प्रातः स्नान के बाद एवं अन्य योग-विधियों के पूर्व इसे करना श्रेष्ठ माना गया है। दिन में किसी भी समय यदि आपको थकान का अनुभव होता है तो इस अभ्यास के द्वारा आप अपनी खोई हुई शारीरिक व मानसिक शक्ति को पुनः प्राप्त कर सकते हैं। - सूर्य नमस्कार 12 स्थितियों से मिलकर बना है जिसमें से प्रत्येक का राशिचक्र के 12 चिन्हों से सम्बन्ध है / सूर्य नमस्कार के एक पूर्ण चक्र में इन्हीं 12 स्थितियों को क्रम से दो बार दुहराया जाता है / 12 स्थितियों में से प्रत्येक के साथ एक मंत्र जुड़ा है / इस अभ्यास से अधिक से अधिक लाभ लेने के लिए इनका मौखिक अथवा मानसिक रूप से उच्चारण करना चाहिए। मंत्र क्या है ? मंत्र अक्षर - समूहों, शब्दों, शब्द - समूहों या वाक्यों से मिलकर बनी संरचना है। मंत्र के दुहराने का मन पर बड़ा शक्तिशाली व तेज प्रभाव पड़ता है। सुनाई देने वाली अथवा न सुनाई देने वाली ध्वनि - तरंगों के मन पर सूक्ष्म प्रभाव पड़ने के कारण ऐसा होता है / यहाँ तक कि इस वातावरण का उपयोग आधुनिक विज्ञान भी कर रहा है। उदाहरण के लिए, विश्व के विभिन्न भागों में स्थित कुछ प्रगतिशील अस्पतालों में अनेक मनो - चिकित्सक ध्वनि के रूप में अपने रोगियों को लम्बे समय तक सुझाव या अन्य व्यक्ति द्वारा दिये सुझावों के अधीन रखकर उनका इलाज करते हैं / इन पाश्चात्य सुझावों तथा योग व अनेक धर्मों में प्रयुक्त मंत्रों में केवल इतना अंतर है कि सुझावों का प्रयोग शारीरिक व मानसिक दशा के सुधारने में किया जाता है जबकि मंत्रों का प्रयोग शुद्ध आध्यात्मिक कारणों से किया जाता है / हिन्दू धर्म (और योग का भी) सबसे अधिक ज्ञात एवं प्रचलित मंत्र ॐ है / यह ईसाई धर्म के 'आमेन' तथा इस्लाम के 'आमीन' का मूल है / 113
SR No.004406
Book TitleAasan Pranayam Mudra Bandh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyanand Sarasvati
PublisherBihar Yog Vidyalay
Publication Year2004
Total Pages440
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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