________________ सार्धशतकनामप्रकरणम् पढमदुगुकोसो सिं पज्जत्तजहन्नगेयरो य कमा / असमत्ततसुक्कोसो पज्जत्तजहन्नजिट्ठो य // 8 // 11 // एवं चिअ ठिइठाणा अपज्जप'ज्जा कमेण संखगुणा / नवरमसमत्तवेदिय एक्कपए. ते असंखगुणा // 7 // 112 / / सव्वे वि अपज्जत्ता होति पइकखणमसंखगुणविरिया / संखगुणूणा सुहुमेसु बायरेसु य असंखगुणा // 88 // 113 / / ठिइबंधे ठिबंधे अन्झवसाया असंखलोगसमा / कमसो विसेसअहिया सत्तसु आउसु असंखगुणा // 86 // 114 // एतत् योगयंत्रकं "सुहुमनिगोयाइखणे" इत्यादिगाथाभिर्विवृतम् / 1 सूक्ष्म अप० जघ० . स्तोक / 15 तेइं० " 16 चउ० " " 17 असं० , 18 संज्ञि , , 26 बेई० पर्या. जघ० 20 तेई० , , or mor.9 उत्कृष्ट / " , , 8 सूक्ष्म " 22 असं० " ." 6 वाद. , / 23 संज्ञि " ", 1. सूक्ष्म प० जघ० 24 बेइं० पर्या० उत्क० 11 बाद. " " / 25 तेइं० . , . 12 सूक्ष्म , उत्कृ० 26 चउ० // 13 बाद० " " " 27 असं० , , 14 बेई० अप० " " / 28 संज्ञि , , 'असुभाण संकिलेसेण होइ तिव्वो सुहाण सोहीए / अणुभागो मंदो पुण विवज्जए सव्वपयडीणं ॥९॥११शा सतरस पयडी संजलण 4 विग्ध 5 पुंदेसघाइआवरणा। 1 भमुहाण" इत्यपि।