________________ सप्ततिकाभिधः षष्ठः कर्मग्रन्थः तिविगप्पपगइठाणेहि, जीवगुणसन्निएसु ठाणेसु / भंगा पजियव्वा, जत्थ जहा संभवो १भवइ / / 32 // 35 // तेरससु जीवसंखेवएसु, नाणंतरायतिविंगप्पो / इक्कमि तिदुविगप्पो, करणं पइ ३इत्थ अविगप्पो॥३३॥३६॥ तेरे नव चउ पणगं, नव संतेगंगि भंगमिक्कारा / वेअणिआउगगोए, विभज्ज मोहं परं ४०च्छं // 34 // 37 // पज्जत्तगसनिअर, अट्ठ चउक्कं च ६वेअणियभंगा। सत्त य तिगं च गोए, पत्ते जीवठाणेसु ॥३८॥(प्र०) पज्जत्ताऽपज्जत्तग, . समणे पज्जत्तअमण सेसेसु / अट्ठावीसं दसगं, नवगं पणगं च आउस्स ॥३९॥(प्र०) अट्ठसु पंचसु एगे, एग दुगं दस य मोहबंधगए / तिग चउ नव उदयगए, तिग तिग पन्नरस संतमि / / 35 // 40 // पण दुग पणगं पण चउ, पणगं पणगा हवंति तिन्न व / पण छप्पणगं छच्छ,-प्पणगं अट्ठ दसगं तिं // 36 // 41 // सत्तेव अपज्जत्ता, सामी ९सुहुमा य बायरा चेव / / विगलिंदिआ १८उ तिन्नि उ, तह य असन्नी ११अ सन्नी १२अ // 37 // 42 // नाणंतराय तिविहमवि, दससु दो १३हुँति दोसु ठाणेसु / मिच्छा१४साणे १५वीए, नव चउ पण नव य १६सतंसा॥३८॥४३॥, १७मिरसाइ १८नियट्टीओ, छ च्चउ पण नव य संतकम्मंसा / चउबंध तिगे चउपण, नवंस दुसु जुअल१६छस्संता॥३६॥४४॥ उवसंते चउ पण नव, खीणे चउरुदय छच्च चउ२०संता। वेअणिआउअगोए, विभज्ज मोहं परं २१वुच्छं // 40 // 45 // चउ छस्सु दुन्नि सत्तसु, एगे चउगुणिसु वेअणिअभंगा। गोए पण चउ दो तिसु, एगट्ठसु २२दुन्नि इक्कमि ।।१६।।(प्र०) 1. "होइ” इत्यपि / 2. “एक्कम्मि" इत्यपि। . 3 एत्थ" इत्यपि। 4. “वोच्छं" इत्यपि / 5 "०यरे” इत्यपि। 6. "वेय०" इत्यपि / 7. “सत्तग०" इत्यपि / 8. "पत्तेयं" इत्यपि। "तह सुहुमबायरा” इत्यपि। 10. "य" इत्यपि / 11.12. "य" इत्यपि / 13. "होति" इत्यपि / 14. "सासण" इत्यपि / 15. “बिइए" इत्यपि / 16 “सत्तंसा" इत्यपि / 17. "मीसाइ" इत्यपि - 18. "नियट्टीए" इत्यपि / 19. "छस्संत" इत्यपि / 20. "संत" इत्यपि / 21. "वोच्छं" इत्यपि / 22. "दोन्नि" इत्यपि।