________________ 18 कर्मस्तवाख्यो द्वितीयः कर्मग्रन्थः सुभसुस्सरजुयला वि य, निमिणं च तहा हवंति नायव्वा / एया तीसं पयडी, सजोगिचरिमंमि वोच्छिन्ना // 38 // 'अन्नयरवेयणीयं, मणुयाऊ मणुयगइ य बोद्धव्वा / पंचिंदियजाई वि य, तस सुभगा एज पञ्जत्तं // 36 // बायर जसकित्ती वि य, तित्थयरं उच्चगोययं चेव / एया बारस पयडी, अजोगिचरिमंमि वोच्छिन्ना // 40 // उदओ सम्मत्तो।। उदयस्सुदीरणाए, सामित्ताओ न विजइ विसेसो / मोत्तूण तिन्नि ठाणे, पमत्त-जोगी अजोगी य // 41 // तीसं बारस उदए, केवलिणो मेलणं च काऊण / सायासायं च तहा. मणयाउं अवणियं किच्चा // 42 // सेसं इगुयालीसं, जोगिंमि उदीरणा य बोद्धव्वा / अवणीय तिन्नि पयडी, “पमत्तउदयंमि पक्खित्ता // 43 // तह चेव अट्ठ पयडी, पमत्तविरए उदीरणा होइ / नत्थि त्ति अजोगिजिणे, उदीरणा होइ नायव्या // 44 // // उदीरणा सम्मत्ता // अणमिच्छमीससम्म... अविरयसम्माइअप्पमत्तंता / सुरनरयतिरियआउं, निययभवे सव्वजीवाणं // 4 // थीणतिगं चेव तहा, नरयदुगं चेव तह य तिरियदुर्ग / इगिविगलिंदियजाई, आयात्रुज्जोयथावरयं // 46 // साहारण सुहुमं 'चिय, सोलस पयडीओं होति नायव्वा / बीयकसायचउक्क', तइयकसायं च अट्ठव // 47 // एग नपुसगवेयं, इत्थीवेयं तहेव एगं च / तह नोकसायछक्क, पुरिसं 'कोहं च माणं च // 48 // मायं चिय अनियट्टीभागं गंतूण संतवोच्छेओ। लोहं चिय संजलणं, "सुहुमकसायंमि वोच्छिन्ना // 46 // 1 "अन्नयरं वेअणीयं मणुयाउं मणुयगती य" इत्यपि / 2 "०इज्ज." इत्यपि / 3 "सजोगम्मि" इत्यपि / 4 "पमत्तविरयम्मि” इत्यपि / 5 "अविरइ" इत्यपि / 6 “वि य" इत्यपि / 7 “हुँति" इत्यपि / क "अट्ठ च" इत्यपि / 9 "कोहा य माणा य” इत्यपि / 10 "सुहुमसरागम्मि" इत्यपि /