________________ कर्मस्तवाख्यो द्वितीयः कर्मग्रन्थः [17 उवसंतखीणमोहे, जोगिमि उ सायवंधवोच्छेओ / नायव्यो पयडीणं, बंधस्संतो अणंतो य // 26 // // बंधो सम्मत्तो // मिच्छत्तं आयावं, सुहुम अपजत्तया य तह चेव / साहारणं च पंच य, मिच्छमि य उदयवोच्छेओ // 27 // अण एगिदियजाई, विगलिंदियजाइमेव थावरयं / / एया नव पयडीओ, सासणसम्मंमि वोच्छिन्ना // 28 // सम्मामिच्छत्तेगं, सम्मामिच्छमि उदयवोच्छेओ / बीयकसायचउक्क, तह चेव य नरयदेवाऊ / / 29 / / मणुयतिरियाणपुधी, वेउव्वियछक्क 'दहयं चेव / अणएज्ज चेव तहा, अञ्जसकित्ती अविरयंमि // 30 // तइयकसायचउक, तिरियाऊ तह य चेव तिरियगई / उज्जोय नीयगोयं, विरयाविरयंमि वोच्छिन्ना // 31 // थीणतिगं चेव * तहा, आहारदुगं पमत्तविरयंमि / सम्मत्तं संघयणं, अंतिमतिगमप्पमत्तमि // 32 // तह नोकसायछक, अपुवकरणंमि उदयवोच्छेओ। वेयतिगकोह माणामायासंजलणमनियट्टी // 33 // संजलणलोभमेगं, "सुहुमकसायंमि उदयवोच्छेओ / / तह 'रिसहं नारायं, नारायं चेव उवसंते // 34 // निदा पयला य तहा, खीणदुचरिमंमि उदयवोच्छेओ। नाणंतरायदसगं, दसण चत्तारि चरिमंमि // 35 // अन्नयरवेयणीयं, ओरालिय-तेय-कम्मनामं च / छ च्चेव य संठाणा, ओरालियअंगुवंगं च // 36 / / आइमसंघयणं खलु, वण्णचउकं च दो विहायगती / अगुरुयलहुयचउक्क, पत्य थिराथिरं चेव // 37 // 1 "दूहिय” इत्यपि / 2 "तिरियाउं तह य चेव तिरियगई" इत्यपि / 3 "निच्च०" इत्यपि / 4 "माणय०" इत्यपि / 5 "सुहुमसरागम्मि" इत्यपि / 6 "रिसहना०" इत्यपि / 7 "अन्नयरं वेभणीयं" इत्यपि।