________________ 12 कर्मविपाकाख्यः प्रथमः कर्मग्रन्थः सिरमाईण सुहाणं, अंगावयवाण जस्स उदएणं / निष्फत्ती उ सरीरे जायइ तं होइ सुभनामं // 142 // पायाई असुहाणं, अंगावयवाण जस्स उदएणं / निष्फत्ती उ सरीरे जायइ तं असुभनामं तु // 143 // सूभगकम्मुदएणं 'हवइ हु जीवो उ सव्वजणइट्ठो / 'दुहगकम्मुदए पुण, दुहओ सो सयललोयस्स // 144 / सूसरकम्मुदएणं, सूसरसद्दो 'य होइ इह जीवो / दूसरउदए 'विसरो जंपंतो होइ जणवेसो // 14 // आएजकम्मउदए चिट्ठा जीवाण भासणं जं च / / तं बहु मन्नइ लोओ, अबहुमयं इयरउदएणं // 146 / / जस्सुदएणं जीवो लहइ हु कित्तिं जसं च लोगम्मि / तं जसनामं कम्मं अजसुदए लहइ विवरीयं // 147 // देहंगावयवाणं लिंगागिइ जाइ नियमणं जं च / तहि सुत्तहारसरिसो निम्माणे होइ हु विवागो // 148 // उदए जस्स सुरासुरनरवइनिवहेहिँ पूइओ होइ / / तं तित्थयरं नाम तस्स विवागो 'उ केवलिणो // 146 / ' भणियं नामं कम्मं अहुणा गोयं तु सत्तमं भणिमो / तं पि कुलालसमाणं दुविहं जह होइ तह भणिमो // 150 / / जह इन्थ कुभकारो पुढवीए कुणइ एरिसं रूवं / / जं लोयाओ पूर्य, पावइ इह पुण्णकलसाई // 151 // भुंभुलमाई अन्नं. सो चिय पुढवीऍ कुणड रूवं तु / जं लोयाओ निंद, पावइ अकएवि मज्जंमि // 152 // एव कुलालसमाणं, गोयं कम्मं तु"होइ जीवस्स / उच्चानीयविवागो जह होइ तहा निसामेह // 153 // १२अधणी बुद्धिविउत्तो, रूवविहूणोवि जस्स उदएणं / 13 लोयंमि लहइ पूर्य , उच्चागोयं तयं होइ // 154 // 1 "होइ हु" इति / 2 'दूमगकम्मदएणं; दुब्मगओ" इति “दूभगकम्मुदएणं दुभगो सो सव्वलोगस्स" इति वा / 3 “सव्वलोगस्स" इति। 4 "उ" इति / ५"विरसो" इति / ६“अवमन्नई” इति / 7 "कित्तीजस" इत्यपि पाठः / "लोए' इति / / "य" इति / 10 "तं" इत्यपि / 11 “इत्थ" इति / 12 “अधणो' इति पाठः।१३ "लोगम्मि" इति।