________________ कर्मविपाकाख्यः प्रथमः कर्मग्रन्थः गइ होइ 'चउम्मेया, 'जाईवि य पंचहा मुणेयव्वा / पंच य हुति सरीरा, अंगोवंगाई "तिन्नेव // 76 // छस्संघयणा जाणसु, संढाणावि य 'हवंति छच्चेव / वण्णाईण चउक्कं, अगुरुलहुवधायपरथायं // 77 // अणुपुन्बी चउमेया, उस्सासं आयवं च उजोयं / सुहअसुहविहायगई, तसाइवीसं च निम्माणं // 7 // तित्थ यरेण य सहिया, सत्तट्ठी एव हुति पयडीओ। सम्मामीसेहि . विणा, तेवना सेसकम्माणं // 76 / / एवं विसुत्तरसयं . 'बंधे पयडीण होइ नायव्वं / बंधणसंघायावि य, सरीरगहणेण इह गहिया // 8 // पंधणमेया पंच उ, संघायावि य हवंति पंचेव / * पण वण्णा दो गंधा, पंच रसा अट्ट फासा य // 8 // दस सोलस छन्वीसा, एया मेलेहि सत्तसडीए / तेणउई होइ तओ, बंधणमेया उ "पण्णरस // 2 // सव्वेहि वि छूढेहिं. तिगअहियसयं तु होइ नामस्स / एएसिं तु विवागं, बुच्छामि अहाणुपुवीए // 3 // नारयतिरियनरामरगइमेया. चउविहा गई होइ / एसा खलु ओदइए, होइ हु भावे जओ आह // 4 // जीएँ उदएण जीवो, नेरइओ होइ नरयपुढवीए / सा भणिया नरयगई. सेसगईओ वि एमेव // 5 // इगदुगतिगचउरिदियजाई पंचिंदियाण पंच मिया / खयउवसमिए भावे, हुंति हु 'एया जओ आह // 86 // एगिदिएसु जीवोः जस्सिह उदएण ''होइ कम्मस्स / सा एगिदियजाई; जाईओ एव "सेसा उ // 8 // ओरालियवेउब्वियआहारयतेयकम्मए १२चेव / एवं पंच सरीरा, तेसिँ विवागो इमो होइ ||8|| 1 "चउपयारा" इत्यपि। 2 "जाईविह" इत्यपि। 3 "तिण्णेव” इति। 4 "तहेव” इति पाठः / ५"यरेणं स०" इति / 6 “बंधणपयडीण" इति / 7 “पन्नरस" इति / " विहा" इति / ९"भेया" इति। '10 "जाइ" इति / 11 "सेसावि” इति / 12 "चेवं / पंचेव सरीरा तेसिं च विमागं इमं सुणह" इत्यपि पाठः।