________________ क्षेत्रसूक्ष्मत्व सूचीश्रेणि-तर-प्रकृतिभेदादिप्ररूपणम् [46 अणुभागबंधठाणा इय 'एक्क्के कसाउदए // 116 / / एयाओ तिन्नि वि गाहाओ पुब्बुताणं चेव पयडिभेयाईणं चउण्हं अत्थाणं सरूवनिवगाऊ पुवमेव भावियत्याओ त्ति न वक्वाणिज्जति / 114-115-116 / / / पुवं एक्केके कसाउदए ठीबंधज्झवसाणलक्खणे अखेज्जलोगागासप्पएसप्पमाणा अणुभागवंधज्झवसाणठाणा भणिया! ते किं सव्वस्थ समा ? अह अन्नह ? ति भण्णइ,अन्नहा, जओ थोवाऽणुभागठाणा जहन्नठिइपढमबंधहेउम्मि / बीय इ विसेस हया जा चरनार चरमहेऊ // 117 / / नाणावरगीयस्य जहणठिईए निव्वत्तगो जो सवजहन्नो कसायउदयभेओ सो जहन्नठिईए पढमो बंधहेऊ वुच्चइ / तत्थ थोव गुभागबंधझवसायठाणा / "बायाइ पिसेसहिय"त्ति / बीयाए वि हेऊए विसे साहिया / तइयाए हेऊए विसेसाहिया। चउत्थाए हेऊए विसेसाहिया / एवं विसेमाहिआ विसेसाहिआ जाव नाणावरणीयस्स जहन्नाठईए चरमो हेऊ। २(तत्थ विसे साहिया चरिमाओ बीयठीईए पठमो हेऊ तत्थ विसेसाहिओ एवं जाव निरंतरं विसेसाहियो जाव बीयठीईए चरभो हेऊ एवं निरंतरं विसेसाहिओ विसेमाहियो जाव नाणावरणस्स उक्कोसठिईए जो चरिमो ठीभेओ तत्थ जो चरिमो बंधहेऊ। ) तत्थ विसेसाहिओ / / 117 / / इय असुभाण सुभाण उ विवरीयं जेठिइचरमहेऊ / आरख्भ निज आउसु ठिई ठिई पइ असंखगुणा // 118 // एवं असुभपयडीणं, सुहपयडीण "विवरीयं' ति किं विवरीयं ? भन्नइ,-"जेडटिईए"त्ति उक्कोसं कसा प्रोदयं आरब्भ आई काउं नेज्जा ताव जाव जहन्नठिईए पढमो बंधहेऊ कसाओदओ जहा सायावेयणियस्स पन्नरससागरोवमकोडाकोडीओ उक्कोसा ठिई तस्स जो चरिमो ट्ठीभेओ तस्स य जो चरिमो बंधहेऊ तत्थ सव्वथोवा अणुभागबंधज्झवसाणठाणा | दुचरिमे विसेसाहिया तिच रमे विसेसाहिया / एवं विसेमाहिया विसेसाहिया जा चरिमाए ठिईए पढमो बंधहेऊ एवं दुचरिमाए ठिईए जो चरिमो बंधहेऊ। तत्थ विसेसाहिया। एवं विसेसाहिया 2, जाव तस्सेव पढमो हेऊ / एवं कमेण ओसरमागाओ ओसरमाणाओ जाव सायावेयणीयस्स जहन्नाए ठिईए पढमो बंधहेऊ, तत्थ सव्वुकोसं अणुभागवंधठाणं / एवं सुहपयडीसु / आउयस्स "ठिई 1 "इक केक के" इत्यपि / 2. () एतचिह्नान्तर्गतः पाठः प्रत्यन्तरे नास्ति /