________________ सप्ततिकामिधे षष्ठे कर्मप्रन्थे नि० ऽनि० | सु० | उ० वी० | स० अजो. * | 4/5 4/5 4/5 4/ 5 4 0 गुणस्थानकेषु मोहनीयस्य बन्धस्थानानिगुणठाणगेसु अट्ठस एक्केक्कं मोहबंधठाणं तु / पंचानियठिाणे पंधोवर मी परं तत्तो सूत्रम् 42 // (371) [341] गुणस्थानकेषु मोहनीयोदयस्थानानिसत्ताइ स उ मिच्छे सासायणमीसए नवुक्कोसा। छाई नव उ अविरए देसे पंचाइ अठेव ।सूत्रम्-४३।। (302) [342] विरए खओवसमिए चउराई सत्त छच्चापुव्वम्मि / अनिअष्टिबायरे पुण एको व दुवे व उदयंमा ||सू.-४४।। (373) [343] एगं मुहुमसरागो वेएइ अवेयगा भवे सेसा / भंगाणं च पमाणं पुवुद्दिटटेण नायध्वं / सूत्रम 15 / / (374) [344] "गुणठाणगेसु अटुसु” इच्चाइनाह * रक्कास विप सुरुवं / / जइ वि इह मोहविवरण गुणठाण पडुच्च हिट्टओ अधिक संपइ पुण कमपत्तं तस्सऽणमा / (375)