________________ सप्ततिकामिधे षष्ठे कर्मग्रन्थे संतस्स पयरिठाणाणि ताणि मोहस्स होति पन्नरस / बंधोदयसंते पुण, भंगविगप्पे बहू जाण ॥सू०-१३॥ (43) [39] नव नोकसाय सोलस, कसाय दंसणतिगं ति अडवीसा / सम्मत्तुव्वलणेणं, मिच्छे मीसे य सगवीसा // 28 // (44) [40] छव्वीसा पुण दुविहा, मीसुव्वलणे अणाइमिच्छत्ते / सम्म दिट्टऽडवीसा, अण 4 क्लए होइ चउवीसा / 26 // (45) [41] मिच्छे मीसे सम्मे 3, खीणे ति-दुवीस एक्कवीसा य / अट्ठकसाए तेरस, नपुक्खए होइ बारसगं // 30 // (46) [42] थोवेयि खीणिगारस, हासाई 6 पंच चउ पुरिसखीणे / कोहे माणे माया, लोभे खीणे य कमसो उ // 31 // (47) [43] "तिग दुग एग असंतं, मोहे पन्नरस संतठाणाणि / बंधोदयसंवेहे भंगविगप्पे बहू जाण // 32 // (48) [4] ठवणा-२८, 27 26, 24 23, 22. 21 13. 12, 11, 5, 4 32,11 "बंधंसुदए पडुच्चा, जइवि पुणो मोहविवरणं वुत्तं / . तह वि य सुहगुणणत्थं सुहसुमरणहेउ एगत्थ / / 33 / / (46) [45] मोहनीयस्य बन्धथानानां मङ्ग:छब्यावीसे चउ इगवीसे सत्तरसतेरसे दो दो / नवबंधए 'उदोन्नि उ, एक्केक्कमओ परं भंगा|सू.-१४।। (50) [46] वेयजुयलेहि चरिया, भंगा छच्चेव चउर नपुऊणा / / जुयहि चउसु दो दो, सेसा एक्कक्क संभविया // 34|| (51)' [47] | 2 | 3 | 4 5 6 7 8 | अनिवृत्ति ठाणाणि मि. सा. मिश्र. अवि. देश. | प्र० | अप्र. अपू० 1 2 3 4 5 बंधट्टाणाणि 2 | 21 | 7 | 17 | 13 | EET321 | भंगा | 6 | 4 | 2 | 2 | 2 | 2|| 1 ||4|1|11 ठवणा 'हन्ति" इति / २०"हिट्रिडवी०'इति प्रती / 3 “थीवेयखीणिगान्स" इत्यपि। 4 "तिगदुगएगअसंत" इति वा, तिग दुग य संत" इति L. D. प्रतौ / 5 "बंधंसगुणं पडु" इति प्रतौ / “बंधु दयगुण" इति L. D प्रौ। ६"वि दुण्णि" इति / 7 "मकारस्त्वलाक्षणिकः” इति सप्तनिकाटीकायाम् /