________________ गुण थानेपूदीरण स्थानान्यल्पबहुत्वञ्च तथा ग्रन्थसमाप्तिः [35 संपयं पगरणकारो सयं सनामसंजुत्तं पणिहाणं करेइ जिणवल्लहोवणीयं जिण वयणामयसमुहबिंदुमिमं / हियकंखिणो बुहजणा निसुणंतु गुणंतु जाणंतु // 86 // (राम०) जिगा सव्वन्नुणो वल्लहा जेसि जगाणं ते जिगवल्लहा जणा तेसिं अहवा जिणवल्लहायरिएहिं उवणीयं ढोकितं मुयसागराओ इह दट्ठव्वं जिणवयणमेव अमयसमुद्दो तस्स बिंदुमिव बिंदु थोवत्ताओ इमें पगरणं हियकरिवणो मोक्खाभिलासिणो बुहजणा-पंडियलोया णिसुणंतु सवणगहणाइणा, गुगंतु-अणवरयं परावचणेण परावत्तयंत, इहापोहलक्खणनाणसभावेण अत्थो मुणंतु // 86 // // सम्मत्तं वत्थुधियारम्स विवरणम् / / / / अथ प्रशस्तिः // नियगुरुवयगाउ मुयं सुयाउ जे सुमरियं तयं लिहिये / मुत्ते उस्पुत्तज, मिच्छामिह दुक्कडं तस्स // 1 // ससमयपरसमयविसारयाण भवियजणकुमुयचंदाणं / पसमाइगुणगुरूणं, पयओ पणमामि पयपउमं // 2 // सुगुरुणं सिरिजिणवल्लहाण सूरीण सूरिपवराणे / उज्झियनियकज्जाणं परोवयारेकरसियाण // 3 // णेण कयं वत्थुवियारसारनामं ति पगरणं पवरें / अप्पग्गंथमहत्थं, तस्सेव णु विवरणं विहियं // 4 // तस्सिस्सलवेणं रामदेवगणिणा उ मंदमइगा वि / पाइयचयणेहि फुडं भवहियटै समासेणं // 5 // / / ग्रन्थानम् 750 // // इति श्रीरामदेवगणिकृता षडशीतिप्रकरणवृत्तिः समाप्ता // इति श्रीरामदेवगणिप्रणीतटीकायुतः षडशीतिनामा चतुर्थः कर्मग्रन्थः /