________________ षडशीतिनाम्नि चतुर्थे कर्मग्रन्थे / अबक्खुबक्खुदंसणमन्नाणतिगं च मिच्छमामाणे / अविरयसम्मे देसे तिनाणदंसणतिगं ति छ उ // 7 // (राम०) अचक्खुदंसणं चक्सुदंसणं अन्नाणतिगं च पंच उवओगा मिच्छे सासायणे य / अविरयसम्मे देसविरए य नाणतिगं देसणतिगं छ उवओगा // 70 // मीसे ते चिय मीसा सत्त पमत्ताइसु ममणनाणा / केवलियनाणदंमणउवओगा जोगजोगीसु // 7 // (राम०) मिस्से ते च्चिय अण्णाणमिस्सा छच्चेव / सत्त पमत्ताईसु, एए छ मणनाणजुया सत्त उवओगा पमत्ताओ जाव खीणमोहो / सजोगिअजोगिकेवलीणं दो उवओगा-केवलनाणं केवलदंसणं च // 71 // इयाणि जे भावा सुये भणिया वि इह न अहिगरिज्जति ते दंसेइ सासणभावे नाणं विउव्विगाऽऽहारगे उरलमिस्सं / नेगिंदिसु 'सासाणोत्ति नेहहिगयं सुयमयंपि // 72 // (राग०) इमाए गाहाए अयं भावत्थो-जहा- “सम्यग्दृष्टेज्ञान' मिति वचनात् तत्त्वार्थादौ सासायणस्स वि नाणं भणियं, सासायणसम्मत्ताओ / तहा सुत्ते वेउव्वियलद्धिजुयतिरियमणुयागं वेउव्वियारंभकाले वेउब्धियमीसं, संवरणकाले उ ओरालियमीसं भणियं, तहा आहारगकाले आहारगमीसं, संहरणकाले पुण ओरालियमीसं। तहा आवस्सए “उभायाभावो एगिदिए" त्ति वचनाद् एगिदिएसु सासाणसम्मत्तं निसिद्धं एवं पुण वक्खाणं आगमे भणियमवि न अहिगयं-- नादरियं इह पगरणे / कुतः ? जओ सासगस्स नाणं अगंताणुबंधिसियत्ताओ अप्पकालीणत्ताओ य न विवक्खियं, विउव्वियाहारउरलमिस्सं पुण सयगचुन्नि अभिप्पाएणं न विवक्खियं / तहा एगिदिसु सासणभावो इह पगरणे भणिओ जीवसमासाऽभिप्पाएण, जओ तत्थ एगिदियस्स वि सासणभावो भणिओ // 72 / / लेसाओ भणेइ / लेसा तिन्नि पमत्तं तेऊ पम्हा उ अप्पमत्तंता / सुक्का जाव सजोगी निरूद्धलेसो अजोगित्ति // 73 // (राम) मिच्छट्ठिीओ जाव पमत्तसंजओ ताव छ लेसाओ, तिण्हं असुहलेसाणं पमत्ते अंतो / अप्पमत्तसंजयस्स लेसाओ तिण्णि, दोण्हं लेसाणं अपमतसंजओ अंतो। उवरिं सुक्कलेसा जाव सजोगिकेवली / अजोगी अलेसो / / 73 / /