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________________ अाजलि - जिन्होंने भवरूपी सागर से मुझे बाहर निकल कर चारित्ररूप नौका पर चढायो और दीक्षा दिन से लेकर बारह वर्ष तक आपने सानिध्य में रख कर ग्रहणशिक्षा और आसेवनशिक्षा के साथ साथ ही संस्कृत-प्राकृतव्याकरण न्याय दर्शन काव्य कोश छन्द अलङ्कार प्रकरण छेद आगमादि विविध विषयक ग्रन्थों के अभ्यास द्वारा अमृतपान करवाया / जिन्होंकी सतत सत्प्रेरणा और परम कृपा से ही महागंभीर और अतिभगीरथ ऐसे कर्मसाहित्य के नवनिर्माण में आज तेरह तेरह वर्ष तक लगातार प्रयत्नशील रहा हूं और भी ऐसे नवसर्जनादि अनेक कार्यो में व्यस्त रहने पर भी जिस पुण्यपुरुष की अमीदृष्टि से ही इस ग्रन्थरत्न की सम्पादनता में भी सफलता पा रहा हुँ / उन कर्मसाहित्य के सूत्रधार सिद्धान्तमहोदधि सच्चारित्रचूडामणि परमशासनप्रभावक सुविशालगच्छाधिपति परमाराध्यापाद ___ स्वर्गीय आचार्यदेवेश श्रीमद् विजय प्रेमसूरीश्वरजी महाराजा की परमपावनी स्मृति में भवदीय कृपैकाभिलाषी मुनि वीरशेखर विजय
SR No.004404
Book TitleKarmgranth tatha Sukshmarth Vicharsar Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeershekharvijay
PublisherBharatiya Prachya Tattva Prakashan Samiti
Publication Year1974
Total Pages716
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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