________________ मनुष्यगतौ वन्धस्वामित्वम् [ 135 सामान्यतो बन्धं प्रत्युक्तम् , न पुनः काञ्चन गतिमाश्रित्य / यथा-'सतरससयमेगुत्तर चउसयरी तह य स तसयरा य / सगसट्ठी तेवट्ठी, उणसट्ठी अठवण्णा य // 1 / / छप्पपणा हव्यासा, बाबासा सत्तरेगमेगंच / एगो य बंधसेसो मिच्छाइसु होति नायव्वा। // 2 // " अङ्कतस्तु सामान्येन 120 / म० 117 / सा० 101 / मि० 74 / अ० 77 / दे०६७। प्र० 63 / अ० 59, 58 ।नि० 58, 56, 26 / अ० 22 21, 2019, 18 / सू० 27 / उ० 1 / क्षी० 1 / स० 1 अ००। एतानि चाङ्कस्थानानि प्रतिगुणस्थानमनेन प्रकृतिव्यवच्छेदक्रमेण जायन्ते / यथा-'मिच्छं सोलस पणवीस सासणे अविरए य दसपयडी। चउछकमेग देसे, विरए य कमेण वोच्छिन्नाः / / 2 / दुगतोस चउरपुव्वे, पंच नियट्टिम्मि बंधवोच्छेओ। सोलस सुहमसरागे, सायसजोगोजिणवरिंदे // 2 // " इह मिथ्यादृष्टिसासादनगुणस्थानकद्वये वन्धं प्रति व्यवच्छिन्नाः प्रकृतयोऽत्रैव प्राक् प्रतिपादिताः / मिश्रे तु न काश्चन प्रकृतयो व्यवच्छिन्नाः, अतोऽविरतगुणस्थानकादी बन्धं प्रति व्यवच्छिन्नाः प्रकृतयः प्रतिपाद्यन्ते / तद्यथा-"घीयकसायचउक्कं 4, मणुयाउं 5 मणुयदुवय 7 ओरालं 8 / तस्स य अंगोवंगं 9, संघयणाई 10 अविरयम्मि / 1 // तइयकसायचउक्कं 4, विरयाविरयम्मि पंधवोच्छेओ / अस्साय 1 मरइ 2 सोगं 3, तह चेव य अथिर 4 असुहं 5 च / / 2 / / अजसकित्ती 6. य तहा, पमत्तविरयम्मि बंधवोच्छेओ। देवाज्यं च एगं, 'नायव्वं अप्पमत्तंमि // 3 / निद्दा 1 पयला 2 य तहा, अपुव्वपढमंमि पंधवुच्छेओ। देवदुर्ग 2 पचिंदिय 3, उरालवजं चउसरीरं 7 // 4|| समचउरं 8 वेउव्विय 9, आहारगअंगुवंगनामं 10 च / वण्णचउक्कं 14 च तहा, अगुरुयलहुयं च चत्तारि 18 / / 5 / / तसचउ 22 पसत्यमेव य, विहायगइ 23 थिर 24 सुहं च 25 नायव्वं / सुहयं 26 सूसरमेव य 27, आएजं 28 चेव निमिणं च 29 // 6 // तित्थयरमेव तीसं, 30, अपुव्वछन्भाय बंधवोच्छेओ / हास 1 रह 2 भय 3 दुगुका 4, अव्वचरिमम्मि वोच्छिन्ना // 7 // पुरिसं 1 चउसंजलणं 5, पंच य पयडीओ पंचभागम्मि।अनियट्टोअडाए, जहक्कम बंधवोच्छेओ // 8 // नाणंतरायदसगं 10; दसणचत्तारि 14 उच्च 15 जसकित्ती 16 / एया सोलस पयडी सुहमसरागमि वोछिचना / / 9 / / उवसंतखीणमोहे, जोगिम्मि उ साय 1 बंधवोच्छेओ। नायचो पयडीर्ण, बंधस्संतो अणंतो य // 10 // " बन्धस्यान्तोऽनन्तश्चेत्यस्यायमर्थःयाः प्रकृतयो यत्र गुणस्थाने व्यवच्छिन्नास्तत्र तासामन्तोऽग्रेतनगुणस्थाने न गच्छन्तीति, अन्यासां त्वनन्त उत्तरत्रापि गच्छन्तीति तात्पर्यमिति | आसां दशानामपि गाथानां पुनर्व्याख्यानां कर्मस्तवटोकातो बोद्धव्यमिति / तथाऽत्रैव प्रकृत्यपकर्षप्रक्षेपकथनगाथाः / यथा 1 कर्मस्तवे तु "तहप्पमत्तम्मि नायव्वं" इत्येवंरूपः पाठो-ऽपि दृश्यते / EEEEEEEEEE |