SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 307
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 210 निबन्धसंग्रहाख्यव्याख्यासंवलिता [सूत्रस्थान अथ मद्यवर्गः। पिष्टसुरां कथयित्वा कुधान्यसुरामाह-पित्तलेत्यादि / यवैरिति सर्व पित्तकरं मद्यमम्लं रोचनदीपनम् // बहुवचनाद्यवयविकातियवा गृह्यन्ते / सवाततोदशूला मलस्यामेदन कफवातनं हृद्य बस्तिविशोधनम् // 170 // प्रात्तावष्टम्भः, अन्य गुडगुडाशब्दमाहुः / यवाकण्वन पाके लघु विदााष्णं तीक्ष्णमिन्द्रियबोधनम्॥ / सुरेयम् ॥विकासि सृष्टविण्मूत्रं श्लेष्मलं तु मधूलकम् // अथ मद्यानि गुणकर्मभ्यां निर्दिशन्नाह-सर्वमित्यादि / सर्व मधूलकमाह-श्लेष्मलं तु मधूलकमिति / मधूलकः खल्पपैष्टिकं माद्वीकं गौडं च त्रिविधं हि मद्यम् / अम्लमिति लवण- गोधूमो मध्यदेशे 'पीशीका' इति ख्यातः, मर्कटहस्ततृणं वा, वज्यं पञ्चरसखेऽप्यम्लस्योत्कटत्वादम्लकार्यकारिलाचाम्लमित्यु- तत्फलकिण्वं मधूलकम् ; 'असंजातमा मधूकपुष्पोत्थम्' इति तम् / इन्द्रियबोधनम् इन्द्रियपाटवकरम् / विकासि सन्धिबन्ध- जेज्झटः॥ 178 ॥विमोचकम् / सृष्टविण्मूत्रं विष्ठामूत्रप्रवर्तकम् / एते सर्वमद्य-रक्षा नातिकफा वृष्या पाचनीचाक्षिकी स्मृता१७९ गुणाः // 170 / आक्षिकी सुरामाह-रूक्षेत्यादि / अक्षस्य बिभीतकस्य शृणु तस्य विशेषणम् // 171 // वल्कलैः सह कृता आक्षिकी; 'वल्किकी' इति केचित् , अत्रापि मा.कमविदाहित्वान्मधुरान्वयतस्तथा // स एवार्थः // 179 // रक्तपित्तेऽपि सततं बुधैर्न प्रतिषिध्यते // 172 // | त्रिदोषो मेद्यवृष्यश्च कोहलो वदनप्रियः॥ मधुरं तद्धि रूक्षंच कषायानुरसं लघु॥ | कोहलगुणमाह-त्रिदोष इत्यादि। यवसक्तकृतः कोहल: लघपाकि सरं शोषविषमज्वरनाशनम् // 173 // | 'कोहलिका' इति लोके, अन्ये पुनर्भक्तसुरामाहुः, यामेव पौण्ड्राः मार्तीकमाह-माकमित्यादि / मार्दीकमविदाहिलादिति | 'काञ्चनाली' इत्याहुः।मार्दीक द्राक्षोद्भवम् / मधुरान्वयतो मधुरद्रव्यप्रभवत्वात् ग्रााष्णो जगलः पक्का रूक्षस्तृट्कफशोफत् 180 // 171-173 // हृद्यः प्रवाहिकाटोपदुर्नामानिलशोषहृत् // मार्दीकाल्पान्तरं किंचित् खार्जूरं वातकोपनम् // जगलगुणमाह-ग्राहीत्यादि / जगलोऽधः कि' मद्यस्य यो तदेव विशदं रुच्यं कफनं // 174 // | बहिस्त्यज्यते / अन्ये 'किण्वभक्तसुरा जगलमित्युच्यते' / कषायमधुरं हृद्यं सुगन्धीन्द्रियबोधनम् // | शोफहा लेपेन / शोषः क्षयः // 180 // खार्जूरमाह-माकेत्यादि / अल्पान्तर स्तोकमेदम् / बक्कसो हृतसारत्वाद्विष्टम्भी वातकोपनः // 18 // कर्शनं कार्यकरम् // 174 // | दीपनः सृष्टविण्मूत्रो विशदोऽल्पमदो गुरुः॥ कासार्शीग्रहणीदोषमूत्राघातानिलापहा // 175 // बक्कसगुणमाह-बकस इत्यादि / बक्कसो जगल एवाद्रवः स्तन्यरतक्षयहिता सुरा बृंहणदीपनी // | किण्वौषधमात्रम् // 181 // सुरागुणमाह-कासार्श इत्यादि / सुरा लोहितवर्णा पिष्टकि- कषायो मधुरः शीधुर्गोंडा पावनदीपनः॥१२॥ प्वकल्केन किंचित्कलुषा / एते सर्वसुरागुणाः // 175 // - गुडशीधुमाह-कषाय इत्यादि / शीधुः सस्यक इक्षुरसेन कासाोंग्रहणीश्वासप्रतिश्यायविनाशनी॥१७६॥ कथितेन धातक्यादिबद्धपाशः कालान्तरेण निष्पन्नः किंचिद्रुड. श्वेता मूत्रकफस्तन्यरक्तमांसकरी सुरा॥ घृतावापः सस्यकवाच्यः // 182 // श्वेतसुरागुणमाह-कासार्श इत्यादि / श्वेतसुरा श्वेतपुनर्न- शार्करो मधुरो रुच्यो दीपनो बस्तिशोधनः॥ वादिमूलशालिपिष्टककिण्वप्रभवा 'कतोली' इति प्रसिद्धा वातघ्रो मधुरः पाके हृद्य इन्द्रियबोधनः // 183 // // 176 // शार्करशीधुमाह-शार्कर इत्यादि / गुडशर्करया खण्डशर्कछर्घरोचकहृत्कुलितोदशूलप्रमर्दनी // 177 // | रया वा क्रियत इति शार्करशीधुः / इन्द्रियबोधनः इन्द्रियप्रसन्ना कफवाता♚विबन्धानाहनाशनी॥ पाटवजनकः // 183 // प्रसन्नागुणमाह-छात्यादि / तोदः पीडा, शूलं द्वादश-| तद्वत् पक्करसः शीधुर्वलवर्णकरः सरः॥ प्रकारमुक्तलक्षणम् / प्रसन्ना सुराया मण्ड उपर्यच्छो भागः / शोफनो दीपनो हृद्यो रुच्यः श्लेष्मार्शसां हितः१८४ बिबन्धो वातादीनामप्रवृत्तिः / आनाह उदरापूरः // 177 // पक्करसशीधुमाह-तदित्यादि / तद्वत् शार्करवत् / पक्करसः पक्वेनेचरसादिना कृतः॥ 184 // पित्तलाऽल्पकफा कक्षा यवैर्वातप्रकोपणी // 178 // विष्टम्भिनी सुरा गुर्वी 1 किण्वं' इति पा०।
SR No.004403
Book TitleSushrut Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushrut Maharshi, Narayanram Acharya
PublisherChaukhambha Orientaliya
Publication Year
Total Pages922
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy