________________ जीवनपति ] [31 पज्याचार्य श्रीमद्विजयदानसूरीश्वरजी म. नी / नूतन आचार्यश्रीना वात्सल्यनीरना भर्या कृपाथी शास्त्रबोधनो विकास को अने पंन्यासोनी प्रसन्न नयनो, संयमना लावण्यथी ओपन मुख, पंक्तिमा प्रवेश कर्यो. शासन माटे सदा वफादार रहेनारा बाहु जोईने सर्वना पूज्याचार्य श्रीमद्विजयप्रेमसूरीश्वरजी म. नी मनोमंदिरमा प्रसन्नताना प्रदीपो प्रगट्या. कृपाथी त्याग वैराग्य अने संयमने विकसावीने पंच पूज्याचार्य श्रीक्षमाभद्रसूरिजी महाराजे 1995 परमेष्ठीमां चतुर्थपदे बिराजमान थया. दिन प्रति नु चातुर्मास वापी कयु. आ चातुर्मासमां तेओओ दिन तेमनी आज्ञापालननी अने सेवानी भावना सटीक ‘गौतमीय महाकाव्यनु' संपादन कार्य वधती ज जती हती. तेमणे अनेकवार प्रज्योनी सेवाना| प्रारंभ्यु हतु. पण आ काव्यनु प्रिन्टींग ( छपाई ) अवसरो प्राप्त कर्या हता, छतां तेमनु हृदय अतृप्त ज | मुंबई-निर्णय सागर प्रेसमां थतु होवाथी टपाल रोतहत जेम जेम सर्यन तेज बधत जाय तेम द्वारा प्रूफ आवता समय घणोज लागी जतो हो. तेम कमलनो विकास, वृद्धि पामतो जाय छे. ओज | आधी तेमणे आ कार्य मुबई बिराजमान विद्वान प्रमाणे पू० उपा० श्री क्षमा वि० म० नो सिद्धांतमहो- | मु मुनिवर्य श्रीकनक विजयजी म० ( हाल पंन्यास )ने दधि श्रीमद्विजय प्रेमसूरीश्वरजी म. प्रत्येनो सेवाभाव | सॉप्यु. मुनिवर्यश्रीओ पण वडिलोनी आज्ञाथी आ जेम जेम वधतो. जतो हतो तेम तेम तेमना प्रत्ये | कार्य संभाळी लीधु. आचार्य देवश्रीनी कृपादृष्टि पण वृद्धि पामती हती. चातुर्मास बाद तेमणे राजस्थान ( मारवाड ) आथी अक अवो दिवस आवी पहोंच्यो के जे दिवसे | तरफ विहार कर्यो. पूनमचन्दजी गोमाजी वगेरे श्राव: भाचार्यदेवश्रीमद्विजय प्रेमसूरीश्वरजी म० ना हृदय- | कोनी विनंतीथी तेमणे मारवाडमां बेडा मुकामे सागरमां पू० उपा० श्री क्षमाविजयजी म० ने आचार्य- स्थिरता करी. आ समये त्यां पूनमचन्दजी गोमाजीनी पदथी अलंकृत करवानी भावनानुक मोजुउछळी | आर्थिक सहायथी तैयार थयेल ज्ञानमंदिरमां न्याय, आव्यु. व्याकरण, ज्योतिष, आगम वगेरे विविध साहित्यना अनेक पुस्तको वसाववामां आव्या. तेओश्रोना पुण्य आ समये पू० आचार्यदेवेश मोहमयी मुबईनी | हस्ते वैशाख सुद 6 ना तेरमा तीर्थंकर श्री विमलनाथ भूमिने संयमना संस्कारोथी सिंची रह्या हता, ज्यारे | स्वामी वगेरे जिनबिंबोनी अंजनशालाका-प्रतिष्ठा पू० उपाध्यायाजी महाराज स्तंभनतीर्थनी भूमिमां धर्म- | तथा स्वगुरुदेव श्रीअमी वि० म० नी मूर्तिनी प्रतिष्ठा वृक्षने नवपल्लवित करी रह्या हता. तेमने पू० आचार्य | करवामां आवी. वैशाख सुद बीजना दिवसे शुभमुहूर्ते भगवंतनी मुबई आववानी आज्ञा थतां कशो विचार | तपस्त्रीरत्न पू0 पंन्यास श्रीकपूर वि0 गणिवयंने कर्या विना तेमणे तुरत मुबई तरफ विहार को. | | उपाध्याय पदनु प्रदान कयं. 1996 नु चातुर्मास अल्पसमयमा पूज्यपादश्रीनी सेवामां हाजर थई गया. लुणावा, 1997 नु चातुर्मास रतलाम, 1998 नु चातुर्मास ईन्दोर कयु. आ त्रण चातुर्मास दरमीयान वि० सं० 1995 नी महा सुद सातमना दिवसे उपधान, तीर्थयात्राना संघो, प्रतिष्ठा, दीक्षा, महोत्सवो मंगल मुहूर्ते मुबईनी विशाळ मानवमेदनीनी वच्चे | वगेरे अनेक शासन प्रभावनाना कार्यो थया हता. पूज्याचार्य श्रीमद्विजय प्रेमसूरीश्वरजी महाराजे उपा- | 1999 न चातर्मास पन 1999 नु चातुर्मास पुनः खंभात कयु: ध्याय श्रीक्षमा वि० म० ने आचार्यपदे बिराजमान कर्या. आ समये नाम निर्देश करतां पूज्यपादश्रीओ | चातुर्मास बाद सिद्धगिरिनी नवाणु यात्रा मंगलशब्दो उच्चार्या- आचार्य श्रीक्षमाभद्रसूरि. पूज्यपाद- | करवाना भावथी तेओ पालीताणा पधार्या. अहीं तेगे श्रीना आ शब्दोने उपस्थित जनता जयध्वनिथी | दररोज सवारना सिद्धगिरिनी थात्रा करता अने बपोवधावी लीधा. रना "श्रीशत्रुजयमाहात्म्य" उपर प्रवचन आपता हता.