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________________ 30 ] [ जीवनपति अने झरुखाओ मानव मेदनीथी संकीर्ण बनी गया | श्री जंबू वि०म० ने उपाध्याय पदथी विभूषित कर्या. हता. से अटारीओमाथी अने झरुखाओमांथी नारीवर्ग | सिद्धांतमहोदधि पू० आचार्यश्रीमद्विजयप्रेमसूरीपूज्यश्रीने सोना रूपाना फुलडे वधावतो हतो. आम | श्वरजी म० तथा प्रखरवक्ता आचार्यश्रीरामचन्द्रसूरिजी अंतरना आनंदी अने बाह्य शणगारथी अं अणगार | म० अने पू० उपा० श्री जंबू वि० गणिवर्य आदि नायकनो मुबईमां प्रवेशोत्सव थयो. मुनिमंडलनु चातुर्मास मुंबई लालबागमां थयु. पू० मुबईमां पदप्रदान उपा० श्रीक्षमा वि० म० नु चातुर्मास गोडीजीना उपाआ प्रवेशोत्सवना पडघाओ शम्या न शम्या | श्रयमां थयु. चातुर्मास बाद पू० उपाध्यायजी महाराजे त्यां तो बीजा महोत्सवनी तडामार तैयारीओ थवा | मांडी. आ उत्सव हतो प्रसिद्धवक्ता उपा० श्रीरामवियजी गुजरात तरफ विहार को. 1993 नु चातुर्मास गणिवर्यनी आचार्य पदवी तथा पू० पं० श्रीक्षमाविज सूरत नेमुभाईनी वाडीना उपाश्रयमा कर्य. 1996 नु यजी गणिवर्यनी अने पू० पं० श्री जम्बूविजयजी गणि चातुर्मास स्तंभनतीर्थमां कयु.अहीं चातुर्मास बाद तेमनी वर्यनी उपाध्याय पदवी निमित्ते. आ प्रसंगे श्रीशत्रुजय निश्रामा श्रीमद्विजयानंदसूरीश्वरजी म०, श्रीमद्विजयतीर्थादि विविध रचनाओ तथा ध्वजा पताकाओ | कमलसूरीश्वरजी म. तथा श्रीमद्विजयदानसूरीश्वरजी वगेरेथी लालबागना विशाळ मंडपने देवविमान म० क्षेत्रण स्वर्गीय पू. गुरुदेवोनी प्रतिष्ठा निमित्ते महोत्सव थयो. तुल्य बनावी देवामां आव्यो हतो. जोतजोतामां महोत्सवनी शरूआत थई, अने सातदिवस पूर्ण पण थई ' आचार्य पद गया. हवे आव्यो पदप्रदाननो सोहामणो आठमो ____ अत्यार सुधीमां आपणे जोई आव्या के पू० दिवस वैशाख सुद 6 नो. उपा० श्रीक्षमा वि० महाराजे स्वगुरुदेवनी अखंड पदार्पणनी क्रियानी शरूआत करवानो समय सेवा बजावी हती. अहर्निश तेमनी आज्ञाना पालन थता पहेला ज आ प्रसंगने वधाववा साकरनो कणीयो / माट तत्पर रहता हता. 'गुरु आज्ञा तहत्ति' अ अमनो जमीन उपर पडे अने कीडीओनी कतार आववा लागे जीवनमंत्र हतो. स्वगुरुने देव तुल्य मानता हता. तेम मंडपमा जनता आववा लागी. थोडी ज वारमा | | स्वगुरुदेवना स्वर्गवास बाद तेमणे पू० आ० श्रीपदप्रदाननिमित्ते. शणगारेल माधवबागनो भब्य | मद्विजयदानसूरीश्वरजी म. नी छत्र छाया स्वीकारी मंडप गीचोगीच भराई गयो. क्रियानो समय थतां | हती. आथी तेमने पण देवतुल्य मानता हता अने संयमता . लावण्यथी .सबने आकर्षता पू० आचार्य | | उछळता हैये तेमनी सेवा बजावता हता. भगवंत श्रीमद्विजयप्रेमसूरीश्वरजी महाराज पधार्या बाद तेमनी जीवननौकानु संचालन आचार्य अने साथे लाव्या प० उपाध्यायश्री रामविजयजी म. श्रीमद्विजयप्रेमसूरीश्वरजी म. ना हाथमा आव्य. ने, पू० पं० श्री क्षमा वि० म० ने, अने प० पं० | तेमणे आ पूज्यश्रीनी पण आज्ञा अने सेवामां कमीना श्री जम्बू वि० म० ने. पाछळ आव्युमुनिमंडले. आ| राखी न हती. आ प्रमाणे तेमणे उक्त त्रणे पूज्योनी समये हर्षनी किकियारीओथी तथा सिद्धान्तमहोदधि | आज्ञा अने सेवा अखंड बजावीने त्रणे पज्योना हदयोने श्रीमद्विजयप्रेमसूरीश्वरजी म. नी जयना मंगलनादथी | जीती लीधा हता. त्रणे पूज्यो अमना प्रत्ये असाधारण गगनगाजी रह्यौं अने आनंदथी नाची रह्यो जनतानो ममतानी दृष्टि निहाळता हता. तेमणे त्रणे पूज्योनी हृदयमयूर. पूज्यपादश्रीओ क्रियानो प्रारंभ कराव्यो. पूर्ण कृपादृष्टि प्राप्त करी हती. समय थतां पूज्यपादश्री पू० . उपाध्यायजी म ने | पूज्य गुरुदेवश्रीनी कृपाथी तेओ प्रव्रज्याना आचार्यपदथी अलंकृत कर्या. क्षण पहेलानां उपाध्याय प्रारंभथीज सिद्धहेम व्याकरण जेवा गहन विषयना श्री रामविजयजी गणिवर्य आचार्य श्रीरामचन्द्रसूरिजी अभ्यासनो प्रारंभ करी शक्या हता.. परिणामे वैयाबनी गया. प० पं० श्री.क्षमा वि०म०ने तथा पपं०. करणोनी श्रेणिमां दाखल थया.
SR No.004402
Book TitleMadhyam vrutti vachuribhyamlankrut Siddhahemshabdanushasan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajshekharvijay
PublisherShrutgyan Amidhara Gyanmandir
Publication Year
Total Pages646
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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