________________ [ 29 जीवनपति ] साथ साथै महोत्सवो वगेरे शासनप्रभावनाना अद्भूत | गोडीजीना जिनमंदिरमा उजवायेल महोत्सव अपूर्व .प्रसंगो पण बन्या हता... | हतो. आ भव्य महोत्सवमा लाभ लेनार जनतानी ___आ उपरथी वांचको समजी शकशे के प्राचीन | प्रचुरता अने प्रसन्नता जोईने त्यांनी बुझर्ग वर्ग कहेतो उपयोगी साहित्यनुसंपादन संशोधन करवानी तेमने हतो के- मुंबई शहेरमा छेल्ला पचाश वर्षमा आवो महोत्सव अमारा जोवामां नथी आव्यो. आ केटली धगश हती. हवे तेओ संपादन-संशोधननी कलामां सिद्धहस्त बनी गया हता. महोत्सवनी आटली महत्तानो यश पू० दानसूरीश्वरजी म. ना स्वर्गवास अंगे हृदयद्रावक प्रवचन करनार अक कारमो दिवस पू० पं० श्रीक्षमा विजयजी गणिवर्यनै मल्यो हतो. पू० चातुर्मास बाद पू० पंन्यासजी म० मुंबई- | पंन्यासजी महाराजने श्रीदानसूरीश्वरजी म० ना स्वर्ग वासथी अत्यंत दुःख थयु हतु. आथी तेमणे स्वर्ग गोडीजीना उपाश्रये पधार्या.संपादन-संशोधननी प्रवृत्ति | स्थ सूरीश्वरजीना स्वर्गवास अंगे जे प्रवचन आप्यु चालु ज हती. अहीं तेमना माटे अक कारमो दिवस | आवी गयो के जे दिवसथी तेमने सदाने माटे अंक | | हतु, तेमां अके अंक वाक्यमां, अके अंक वचनमा | आघातनी लागणीनो अनुभव थतो हतो. आथी ज उपकारी पूज्यनो असह्य वियोग थयो. अ अमंगल | तेमनु आ प्रवचन खरेखर असाधारण हृदयद्रावक दिवस हतो वि० सं० 1992 नी महा सुद बीजनो. आ | दिवसे पाटडी मुकामे सकलागमरहस्यवेदी परमपूज्य | | बन्यु हतु: तेमनु अके अंक वाक्य श्रोताना हृदयमां आचार्य श्रीदानसूरीश्वरजी म. समाधि पूर्वक कालधर्म | प्रय झणझणाटो पैदा करतु हतु. तेमना आ प्रवचननी पाम्या हता. आ समाचार पंन्यासजी म० ने मळतां | | असरथी अने तेमनी प्रेमभरी प्रेरणाथी गोडीजीनी तेमणे सखत आघात अनुभंव्यो. आ समये मुंबईना | | जनता आ भव्य महोत्सव उजव्यो हतो. भाविक भक्तवर्गने पण दुःख कम न थयु हतु.. मुबईमा प्रवेशोत्सव _____ कारण के तेमने वि०सं० 1987 मां स्वर्गस्थ पू० | | वि० सं० 1992 नी चैत्रवद 6 नु मंगल प्रभात आचार्य भगवंतना जीवननो पूर्ण परिचय थयो हतो. खील्यु. पूर्व आकाशमां ऊषानु हास्य खोली उठ्य तेमना परिचयमा आवनार सर्व कोई जोय हतके थोडी ज वारमा सूर्यनारायणे मुंबई बंदर उपर डोकियु तेमनी वाणी अद्भूत संजीवनी हतो. अमना त्यागे | नेत्री तापी अन संजीवनी तो मामा कय.मुबईनु शान्त बनलु वातावरण पुन: धमालियु सौना मन गळगळां करी नाख्या हता. अमनी सहन- बनी गयु. आ समये मुंबईनी धर्म प्रेमी जनताना शीलता) सर्वना मुखमां आंगळा घलांव्या हता. | हृदय सागरमा उत्साहनी ऊर्मिओ उछळी रही हती. श्रेमनी निःस्पृहता अनेकने अचंबो पमाड्यो हतो. सर्वे मेक महापुरुषना स्वागत माटे अधीरा बनी रह्या अमना देह उपर चमकारा मारतुं संयमन लावण्य / हता. आज सिद्धान्तमहोदधि परमकारुणिक आचार्यसवेने प्रसन्नतानी अने त्यागनी भव्य प्रेरणा आपतः| श्रीमद्विजय प्रमसूरिजी म० पोताना शिष्यरत्न प्रखर हतु. आभना तारलिया जेवी अमनी आंखोमांथी | वक्ता उपाध्याय श्रीरामविजयजी गणिवर्य आदि मुनिसदाय करुणाना किरणो प्रसरी रह्या हता. आवा | मंडल साथे मुंबई-लालबागमा प्रवेश करवाना हता. महापुरुषनो सदा माटेनो वियोग मुबईनी धर्मप्रेमी | पू० पं० श्रीक्षमाविजयजी गणिवर्य पण तेमनी साथे जनता माटे असह्य बनी गयो. ज हता. तेओ मुबई आजुबाजुना पराओमां विहार करतां करतां मलाड मुकामे पूज्यश्रीनी साथे थई गया ... हृदयद्रावक प्रवचन हता. प्रवशेनो समय थतां मुंबईनी तथा जुदा जुदा ___ महापुरुषना स्वर्गवास निमित्ते मुंबईमां | पराओनी जनता अकत्रित थई गई. प्रवेश समये अनेक स्थळे महोत्सवो उजवामां आव्या हता. तेमां | तेमना स्वागत माटे कीडीओनी जेम मुंबईनी प्रजा पू० पंन्यासश्रीक्षमाविजयजी गणिवर्यनी सान्निध्यमा | उभराणी हती. गगनचुंबी महामहेलोनी अटारीओ